Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने व्यक्ति को महान बनने के लिए प्रेरित किया है. आचार्य चाणक्य की चाणक्य नीति मनुष्य को हर उस संकट से उभरने और बचने का रास्ता प्रशस्त करती है जिसमें फंसकर मनुष्य को असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है.


जीवन में सफल तभी मिलती है जब व्यक्ति किसी भी वस्तु को पाने के लिए पूरी ईमानदारी और कठोर श्रम करता है. चाणक्य के अनुसार सफलता पाने के लिए श्रम के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं है. जो लोग कठोर श्रम को त्याग कर दूसरे गलत मार्गों का अनुसरण करते हैं वे कुछ दूरी तो तय कर सकते हैं लेकिन सफलता का आनंद नहीं ले सकते हैं. ऐसे लोगों की सफलता स्थाई नहीं होती है, क्षणिक होती है. समाज के सामने ऐसे लोगों की जब असलियत सामने आती है तो उन्हें लज्जित होना पड़ता है.


इन लोगों को नहीं मिलती है सफलता


आलस: चाणक्य के अनुसार आलसी व्यक्ति से लक्ष्मी और सरस्वती दोनों ही दूर रहती हैं. ऐसे लोगों कभी भी सफलता के रस का स्वाद नहीं ले पाते हैं. सफलता रास्ते में आलस एक अवरोध के समान है.


क्रोध: व्यक्ति क्रोध में अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं कर पाता है. क्रोध में इंसान पागल हो जाता है. क्रोध करने वाले व्यक्तियों को सफलता प्राप्त नहीं होती है. वे इससे वंचित रहते हैं.


लालच: लालच व्यक्ति के लिए एक रोग के समान है. लालच करने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं रहता है. मनुष्य की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती हैं. ये बात भूलकर जो मनुष्य लालच करने लगता है वह अपना सुख चैन का नाश कर लेता है. अंत में उसके करीबी भी साथ छोड़ देते हैं.


दूसरों की सफलता से जलना: ऐसा व्यक्ति कभी सफल नहीं होता है जो दूसरों की सफलता से ईष्र्या करता है.ईर्ष्या करने वाला व्यक्ति बाहर से कितना ही सामान्य दिखने की कोशिश करे लेकिन अंदर से ये ईर्ष्या की अग्नि में जलते रहते हैं और अंत में अपनी प्रतिभा और ज्ञान को भी उसी में भस्म कर देते हैं.


कुंठा: प्रसन्न रहने वाले व्यक्ति सफलता को प्राप्त करते हैं. वहीं प्रतिभावान होने के बाद भी कुंठित व्यक्ति सफलता से उसी प्रकार से दूर रहता है जिस पर नदी के दो किनारे. जो साथ-साथ तो चलते हैं लेकिन मिलते कभी नहीं.


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