चाणक्य नीति: सुखी जिंदगी जीने के लिए जरूरी हैं ये बातें
तक्षशिला के महान आचार्य चाणक्य ने सुख से जीने के लिए कुछ बातों को अनिवार्य बताया है. इनमें शिक्षा, संबंधी, कामकाज शामिल हैं. इनके होने से ही व्यक्ति सुखपूर्वक जीवन जी सकता है.
भारतीय दार्शनिक आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में व्यक्ति के सुख के आधार पर कुछ नियम बनाएं हैं. उनकी नीतियां आज भी कारगर हैं.
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः । न च विद्याऽऽगमः कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत् ।।
भावार्थ: जिस देश में मान-सम्मान, आजीविका, गुरु, माता-पिता, विद्या प्राप्ति के कोई भी साधन उपलब्ध नहीं हैं. उस देश के उस स्थान को तुरंत त्याग देना हितकर है.
मान-सम्मान- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसे सुख पूर्वक जीने के लिए मान-सम्मान जरूरी होता है. मान सम्मान की आकांक्षा कितनी प्रबल होती है कि इसकी मिसाल के तौर पर आप भिखारी को भी दुत्कार कर पैसे देना चाहेंगे तो वह स्वीकार नहीं करेगा फिर मान-सम्मान तो उस व्यक्ति के लिए जरूरी है जो अपने पुरुषार्थ से कमा कर खाता हो. वास्तव में व्यक्ति बिना धन के तो जीवित रह सकता है लेकिन बिना मान-सम्मान के जीवित नहीं रह सकता है.
वृत्ति- रोजगार के बिना किसी भी व्यक्ति का जीवन संभव नहीं है. उसे अपने जीवन के लिए आजीविका की जरूरत होती है ताकि अपने रोजगार में श्रम करे. उसे लगातार धन की प्राप्ति होती रहे. उसकी जीविका चलती रहे. बिना वृत्ति या किसी आश्रय के सहारे कोई नहीं रह सकता है. व्यक्ति में स्वयं के प्रति मान-सम्मान की भावना होती है. वह आश्रय में रहने से आहत होती है. इसलिए रोजगार आवश्यक है.
संबंधी- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. वह समूह में ही निवास कर सकता है. एकाकी जीवन संभव नहीं है. उसके जीवन में जब कभी विपत्ति आती है तो उसे अपनों की जरूरत पड़ती है. उस विपत्ति के समय में उसके संबंधी, दोस्त और परिजन साथ खड़े होते हैं. इससे उसे जीवन जीने के लिए संबल मिलता है.
विद्या- मनुष्य को स्वयं की उन्नति के लिए विद्या की जरूरत होती है. अगर वह खुद न भी विद्या अध्ययन करता हो तब भी आने वाली पीढ़ी के लिए उसे विद्या की नितांत अवश्यकता होती है. बिना विद्या के मनुष्य का विकास असंभव है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस देश में उपरोक्त परिस्थियां न हों उस देश में निवास नहीं किया जा सकता है.