Chanakya Niti: परिवार हर मनुष्य की अमूल्य निधि होती है. परिवार में एकता और प्रेम का भाव बना रहे तो जीवन स्वर्ग से कम नहीं होता. चाणक्य ने संतान को लेकर कुछ ऐसे विचार साझा किए हैं जो एक खुशहाल परिवार को बर्बाद भी कर सकते हैं और कुल का नाम रौशन भी कर सकते हैं. चाणक्य ने अपने एक श्लोक में सूखे पेड़ से संतान की तुलना कर मनुष्यों को आगाह किया है. आइए जानते हैं संतान पर क्या हैं चाणक्य के विचार.


एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना।


दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं तथा।।


चाणक्य ने अपने तृतीय अध्याय के पंद्रहवें श्लोक में बताया है कि एक अवगुणी संतान उस सूखे वृक्ष के समान होती है जिसमें आग लग जाए तो वह पूरे जंगल को राख बना देता है. उसी प्रकार एक दुष्ट और कुपुत्र (संतान) पूरे कुल को बर्बाद कर देता है.


एक अवगुणों से परिपूर्ण संतान न सिर्फ खुद की बल्कि परिवार की इज्जत पर कालिख पोत देती है. कूकर्म करने वाले संतान के होने से परिवार का जीवन कष्टदायी रहता है. माता-पिता का मान-सम्मान मिट्‌टी में मिल जाता है. महाभारत का उदाहरण जग जाहिर है, जिसमें दुर्योधन कौरवों के कुल का नाश का कारण बना था.


एकेनाऽपि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना।


आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी।।


कुल का सम्मान बढ़ाने के लिए एक सद्गुणी संतान ही काफी होती है.  चाणक्य ने उदाहरण देते हुए बताया है कि धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक भी ऐसा नहीं है जिसे सम्मान या अच्छे व्यवहार के लिए जाना जाए.


चाणक्य कहते हैं कि कई पुत्रों से एक योग्य और बुद्धिवान संतान ज्यादा अच्छी है. जैसे काली रात में चांद निकलने पर अंधेरी रात जगमगा उठती है उसी प्रकार परिवा में सदाचारी और योग्य संतान के होने पर कुल का उद्दार हो जाता है.


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