लक्ष्य बनाते समय लोगों में अक्सर विचार उठता है कि लक्ष्य क्या हो? और किस प्रकार साधा जाए? इसे आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य की नीति से सहज ही समझा जा सकता है. चाणक्य के अनुसार लक्ष्य बड़ा हो. स्पष्ट हो, लोगों को सहज ही समझ में आता हो, ऐसा होना चाहिए. आचार्य के स्वयं के लक्ष्य भी विराट और साफ थे. विदेशी आक्रांताओं को भारतभूमि से बाहर खदेड़ना और मगध की भ्रष्ट और अहंकारी सत्ता को उखाड़ फेंकना आदि.
ऐसे विराट और स्पष्ट लक्ष्यों से लोग स्वतः ही जुड़ते चले जाते हैं. लोकतंत्र में विभिन्न दलों के उदय को इससे जोड़कर देखा जा सकता है. आजादी से पूर्व सभी संघर्ष प्रेमियों का लक्ष्य आजादी था. इसे समझने और इससे जुड़ने में उन्हें तनिक भी समय नहीं लगता था. आज भी राजनीतिक दल ऐसे ही विशाल लक्ष्य बनाकर लोगों को साथ लाते हैं.
आचार्य चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को लक्ष्य बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अति सीमित न हो. स्वयं पर केंद्रित भर न हो. इससे लोग आपके साथ आने से कतराएंगे. व्यापार में भी यह बात लागू होती है. जब आपका लक्ष्य केवल धनार्जन होता है. व्यापार लंबा नहीं चलता है. क्षणिक लाभ तक सीमित रह जाता है. इसके विपरीत जनहित को साधकर बनाए गए लक्ष्य व्यापार को निरंतर उन्नति से जोड़े रखते हैं. सावर्जनिक हित संरक्षण से व्यापार वैश्विक स्तर तक फलता फूलता है. सबको इससे लाभ होता है. सब इसमें अपना योगदान देते हैं. कारण, इनमें सबके करने के लिए कुछ न कुछ अवश्य होता है. इसमें वे अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकते हैं.