चाणक्य राजनीति और कूटनीति के श्रेष्ठ आचार्य हैं. राजकाज में राजा किन्हें प्रमुख जिम्मेदारियां सौंपे इस पर आचार्य ने विस्तृत रूप से लिखा है. राजा को अमात्यों अर्थात् सत्ता प्रमुखों की संख्या निजी जरूरत अनुरूप रखने की सलाह को प्रमुखता दी है. उन्होंने अपनों को अधिकार देने के संबंध में उतनी कठोरता से परीक्षा लेने का मत रखा है जितना अन्य के लिए आवश्यक माना जाए.
राजा के विश्वस्त अत्यंत स्पष्टवादी, हितचिंतक और ईमानदार होने चाहिए. इस पर आचार्य कहते हैं कि योग्यता का संबंध सिर्फ विद्वता से ही नहीं तय किया जा सकता है. संपूर्ण चरित्र का उचित आंकलन आवश्यक है. वर्तमान में भी संघ लोक सेवा आयोग जैसी संस्थाएं चयन के लिए विभिन्न चरणों में परीक्षाएं आयोजित करती हैं. ऐसी संस्थाएं सिर्फ किताबी ज्ञान को महत्व न देकर समग्रता में योग्य प्रत्याशियों का चयन करती हैं.
आचार्य अनुशासन और गोपनीयता के साथ जनता के प्रति संवेदनशील लोगों को सत्ता के प्रमुख पदों पर चयनित करने के पक्षधर हैं. वे एक मतीय रुझान वाले लोगों की अपेक्षा सभी को समदृष्टि से देखने वाले और उचित निर्णय ले सकने में सक्षम अधिकारियों को आगे बढ़ाने पर जोर देते हैं. अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने में आचार्य चाणक्य का व्यक्तिगत मोह नहीं था. चंद्रगुप्त की नैसर्गिक नेतृत्व प्रतिभा ने उन्हें सम्राट के रूप में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई. इसे निखारने में निश्चित ही चाणक्य का बड़ा योगदान था.