आचार्य का कहना है कि जीवन में ऐसे बहुत से मौके आते हैं जब कठोर वचनों का प्रयोग कर कोई आपको दुखी कर सकता है. परन्तु मात्र इससे आप उन्हें भी प्रति-उत्तर में कठोर वचन नहीं सुना सकते हैं. हो सकता है वे आपके करीबी रिश्तेदार हों जैसे भाई-बहन, पिता या कोई अन्य श्रेष्ठजन. ऐसी स्थिति में आप उन्हें भी कठोर वचन नहीं सुना सकते हैं क्योंकि वे आपके स्वजन हैं और उनके कठोर वचनों का सिर्फ इतना मतलब है कि वे आपका अहित न चाह कर मात्र सावधान करने के उद्देश्य से उन्होंने आपकी आलोचना की हो. वैसे भी आप उनके बिना जीवन न गुजार सकते हों. वे आपके श्रेष्ठजन हों तो उनके कठोर वचनों के पीछे की भावना को ध्यान में रखकर भूल जाना चाहिए.
मंत्र सत्यम्, पूजा सत्यम्, सत्यम् देव निरंजनम्।
गुरु वाक्यम् सदा सत्यम्, सत्यमेकम परम पदम्।।
आचार्य चाणक्य का कहना है कि अध्यात्म के क्षेत्र में गुरु का महत्व अनंत है. गुरु के वाक्य को सदा सत्य माना गया है. इसका एक व्यवहारिक पहलू यह है कि सच्चा गुरु हमेशा अपने शिष्य का भला चाहता है. उसकी प्रताडना भी शिष्य की भलाई के लिए होता है इसलिए बिना किसी सोच विचार के सद्गुरु के वाक्यों को मानना चाहिए. न केवल आचार्य ने इस वाक्य को चरितार्थ किया बल्कि अपने शिष्य़ चंद्रगुप्त को तराशकर अखंड भारत का प्रथम शासक के पद पर सुशोभित करवाया. चाणक्य का कहना है कि गुरु के वचनों को यह समझकर स्वीकार करना चाहिए कि गुरु का आदेश है याने भले यह वर्तमान में हमारे विरुद्ध दिख रहा है परंतु इसका अंतिम परिणाम आपके अनुकूल ही होगा.
चाणक्य का कथन है कि अगर व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो बात भूल जाओ और बात महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को भूल जाओ. अर्थात किसी भी बात का मर्म जानने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए.