Chankya Niti : हर कार्य के लिए व्यक्ति संख्या होती है तय, कम या ज्यादा से बिगड़ सकती है बात
महान भारतीय दार्शनिक आचार्य चाणक्य ने कार्यों को करने के लिए व्यक्तियों की संख्या निश्चित की है. उनके अनुसार अगर व्यक्तियों की संख्या कम या ज्यादा करने से अपेक्षित कार्य उचित ढंग से सम्पन्न नहीं हो पाते हैं.
चाणक्य नीति के अनुसार तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, मनोरंजन तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुतों के साथ किया जाना चाहिए. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तपस्या अध्यात्मिक विषय है इसे व्यक्ति को अकेले करना चाहिए. अगर अधिक व्यक्ति तपस्या करेंगें तो उनके बीच व्यवधान आएगा. दिखावा और प्रतिस्पर्धा की भावना भी जाग्रित होगी जो अध्यात्मिक क्षेत्र में उचित नहीं है. वस्तुतः तपस्या वही सफल होती है जो एकाकी की जाती है. उसी तरह अगर दो व्यक्ति अध्ययन करते हैं तो दोनों के मध्य सीमित प्रतिस्पर्धा होगी और किसी तरह का संशय होने पर एक दूसरे की मदद ली जा सकती है.
चाणक्य नीति कहती है कि मनोरंजन का आनंद लेने के लिए कम से कम तीन व्यक्तियों का होना आवश्यक है. इससे कम में मनोरंजन का आनंद जाता रहता है. इसलिए कम से कम तीन लोगों के साथ मनोरंजन किया जाना चाहिए. उसी प्रकार चाणक्य का कहना है कि खेती में कम से कम पांच लोगों का होना आवश्यक है. बिना पाँच लोगों के खेती नहीं हो पाती है क्योंकि खेती में बहुत से कार्य एक साथ करने पड़ते हैं. कृषि कार्य में कम से कम पाँच की संख्या आवश्यक है.
चाणक्य नीति के अनुसार सबसे अधिक व्यक्तियों की संख्या युद्ध में पड़ती है क्योंकि युद्ध में सामने और युद्ध मैदान से बाहर भी मानसिक और कूटनीतिक युद्ध लड़ा जाता है. युद्ध में एक सेना लगती है. जितने अधिक सैनिक होंगे उतने उनकी जीतने की संभावना बलवती होती है. इसके अलावा गुप्तचर की टोली, विषकन्याओं का जत्था और इसके साथ बड़ी संख्या में शत्रु पक्ष में आपके समर्थकों का होना आवश्यक है. इतनी बड़ी संख्या के व्यक्ति समूहों के उचित संचालन और समन्वयन के आधार पर ही युद्ध जीते जा सकते हैं. चाणक्य ने अपने इस कथन को अपने जीवन से सिद्ध भी किया है और एक रक्त संबंध के आधार पर देश को चन्द्रगुप्त मौर्य के आधीन एक शक्तिशाली विशाल राज्य स्थापित कर दिखाया है.