आचार्य ने स्वयं के जीवनकाल में दो महान युद्ध जीते थे. पहला, सिकंदर के खिलाफ भारत के उत्तरी सीमाई क्षेत्रों में युद्ध छेड़ना. सिकंदर के विरुद्ध आचार्य चाणक्य ने छात्रों, छोटे छत्रपों और डाकू व कबीलों तक को संगठित किया. छोट मोर्चाें को चतुराई से महत्वपूर्ण बना दिया. जिससे से जो सहयोग मिल सका लिया. धनिकों से धन लिया. माताओं से उनके पुत्र युद्ध में सहायता के लिए मांगे.


युवाओं को सेना में जोड़ने के लिए प्रेरित किया. घर घर से युवाओं की मांग उठाई. नतीजतन अत्यंत सीमित संसाधन और शस्त्रों के आचार्य और उनके अनुयायियों ने सिकंदर को न सिर्फ सीमांत प्रदेशों में रोके रखा बल्कि समय आने पर उन्हें खदेड़ने में सफल रहे. 


दूसरी बड़ी लड़ाई मगध सत्ता से लड़ी थी. आचार्य चाणक्य ने लोगों के बीच रहकर उनकी उूर्जा को दिशा देकर यहां विजय प्राप्त की. समाज में सरलता से रहकर लोगों को गलत के विरुद्ध खड़ा किया. नतीजतन आचार्य चाणक्य जीवन का सबसे जरूरी युद्ध बिना बड़े सैन्य बल के ही जीतने में सफल रहे.


महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी कार्य के लिए आवश्यक सहायता बिखरे लोगों से भी इकत्रित की जा सकती है. इसमें जिसने सामर्थ्य हासिल कर लिया उसे आगे बढ़ने से रोकना नामुकिन है..


समाज में सबसे सफल लोगों को विचारा जाए तो ऐसे ही अधिक हैं जिन्होंने साधारण क्षमताओं को लोगों को जोड़ने और नजदीक उूर्जा के अधिकाधिक प्रयोग में महारत पाई थी.