Chaturmas 2021 End Date:  हर साल जुलाई से नवंबर के ये चार महीने चातुर्मास कहे जाते हैं. इस दौरान श्रीहरि विष्णुजी पाताल लोक में विश्राम करते हुए नींद पूरी करते हैं. देव उठावनी एकादशी को फिर देव नींद से जागकर एक बार फिर सृष्टि की जिम्मेदारी उठा लेते हैं और अब तक रुके शुभ कार्य फिर शुरू हो जाते हैं. इस दरमियान खुद महादेव भगवान शिव सृष्टि के रक्षक और पालक बनकर पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं. इस बार सात जुलाई को देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास का आरंभ हुआ था, जो 14 नवंबर को देवउठावनी एकादशी के साथ पूरा होगा. इन पूरे चार महीनों में शुभ आयोजन, खानपान, पूजा-पाठ के साथ रहन सहन का तरीका पाबंदियों के चलते बदल चुका होता है.


प्रबोधिनी एकादशी या देव उठनी एकादशी
प्रबोधिनी एकादशी देवउठावनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाती है. एकादशी व्रत समाप्त करने को पारण कहते हैं. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण होता है. मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत पारण द्वादशी तिथि खत्म होने से पहले करना जरूरी है. द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले खत्म होने पर एकादशी व्रत पारण सूर्योदय के बाद ही होता है. द्वादशी तिथि में पारण न करना पाप के समान होता है.


व्रत पारण के नियम जानना जरूरी


एकादशी व्रत पारण हरि वासर के दौरान नहीं करना चाहिए. जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं, उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए, हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है. व्रत तोड़ने के लिए उपयुक्त समय सुबह होता है. व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए. कुछ कारणों से कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो मध्याह्न के बाद करना चाहिए. विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है.


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