नहाय खाय(Nahay Khay) के साथ ही हो जाती है छठ पर्व की शुरुआत और फिर ये पर्व 4 दिनों तक चलता ही रहता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय होता है और इस बार नहाय खाय 18 नवंबर को है और 20 नवंबर को ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नहाय खाय आखिर होता है क्या है..छठ पूजा(Chhath Puja 2020) में इस रस्म का क्या महत्व है और आखिर इससे ही छठ पर्व(Chhath Parv) की शुरुआत क्यों होती है.
क्या है नहाय खाय?
छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय कहलाता है. और इसके पीछे भी एक कारण है. कहते हैं पहले दिन व्रती नदी या किसी तालाब में जाकर स्नान करता है. और फिर व्रत रखने का प्रण लेता है. इस दिन घर पर कद्दू की सब्ज़ी और सरसों का साग बनाया जाता है और जो भी छठ पूजा का प्रण लेते हैं वो इसी भोजन को ग्रहण करते हैं. इस तरह व्रत की सफलता की मनोकामना की जाती है. यही कारण है कि इसे नहाय खाय कहते हैं.
क्यों है कद्दू और सरसों का साग खाने की परंपरा
कहते हैं कद्दू और सरसों का साग ये दोनों ही सब्ज़ियां सात्विक मानी जाती है. इसीलिए इस दिन घर में यही सब्जियां बनती हैं. इसके अलावा कहते हैं सरसों का साग इस दौरान काफी मिलता है और इसकी तासीर भी गर्म होती है यही कारण है कि लंबे वक्त तक पानी में रहने के बाद इस साग का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है.
बाकी के 3 दिन यह होता है कार्यक्रम
छठ पूजा का कार्यक्रम 4 दिनों तक चलता है. पहले दिन नहाय खाय के बारे में तो हमने बता दिया वहीं अब बाकी के 3 दिनों में क्या होता है वो भी जान लीजिए. इस पर्व के दूसरे दिन खरना होता है जिसमें छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है और शाम को खीर खाने के बाद व्रती कुछ भी ग्रहण नहीं करते हैं. तीसरे दिन मुख्य छठ पूजा होती है. लोग घाटों पर जाते हैं और कमर तक पानी में खड़े होकर ढलते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और फिर व्रती प्रसाद कर व्रत का पारण करते हैं.