Chhath Puja 2021: महापर्व छठ पर व्रत रखकर सच्चे मन से सूर्यदेव की पूजा से छठी मईया हर मनोकामना जल्दी पूरी कर देती हैं. चार दिन चलने वाले इस त्योहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय से होता है. पंचमी को खरना और षष्ठी को छठ पूजा और सप्तमी तिथि पर उषा अर्घ्य होता है. इस दौरान विधि विधान अनुसार पूजा करने से छठ पूजा संतान प्राप्ति, संतान सुरक्षा और सुखमय जीवन के लिए भक्त पूरी श्रद्धा से करते हैं. 


छठ पूजा मंत्र (Chhath Puja mantra)
ॐ मित्राय नम:, ॐ रवये नम:, ॐ सूर्याय नम:, ॐ भानवे नम:, ॐ खगाय नम:, ॐ घृणि सूर्याय नम:, ॐ पूष्णे नम:, ॐ हिरण्यगर्भाय नम:, ॐ मरीचये नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ सवित्रे नम:, ॐ अर्काय नम:, ॐ भास्कराय नम:, ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:


सूर्यदेव मंत्र (Chhath Puja Surya mantra)
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते।।


अर्घ्य मंत्र (Chhath Puja Surya Arghya mantra) 
ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।


छठ पूजा आरती 
जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुग्गा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।। जय।।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदिति होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। जय।।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।। जय।।
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडरराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।।जय।।
ऊ जे सुहनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।। जय।।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।।जय।।
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।।जय।।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।।जय।।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।।जय।।


छठ पूजा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा अनुसार राजा प्रियव्रत की पत्नी का नाम मालिनी था. राजा की कोई संतान नहीं थी. इससे दुखी राजा और पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. इसके बाद रानी गर्भवती हो गई और 9 माह के बाद रानी ने मरे पुत्र को जन्म दिया, यह सुनकर राजा दुखी हुआ और वह आत्महत्या करने ही वाला था, कि सामने दिव्य सुंदरी देवी प्रकट हुईं और कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं. मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य देती हूं. जो भक्त सच्चे भाव से मेरी पूजा करते हैं, उनकी मनोरथ में पूर्ण कर देती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा-आराधना सच्चे मन से करोगें, तो मैं तुम्हारी सभी मनोकामना शीघ्र पूर्ण कर दूंगी. राजा और पत्नी ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टी के दिन माता षष्टी की पूजा पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ की. पूजा और भक्ति देखकर माता षष्टी ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. मान्यता है कि तभी ये छठ पर्व मनाया जा रहा है.


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