Chhath Puja 2023: उत्तर भारत का लोकपर्व छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलता है.  छठ पूजा पर्व सूर्य भगवान और षष्ठी माता को समर्पित है. इस पर्व की खास बात ये है कि व्रत करने वाले भक्त करीब 36 घंटों तक निर्जल रहते हैं, यानी पानी भी नहीं पीते हैं.


ये सबसे कठिन व्रत में गिना जाता है क्योंकि इस व्रत के नियम बेहद कड़े होते हैं. इस साल छठ पूजा 19 नवंबर 2023 को है. छठ पूजा का व्रत संतान सुख, बच्चों की खुशहाली और तरक्की के लिए बहुत खास है ऐसे में छठ पूजा से जुड़ी ये 10 बातें जरुर जान लें.


छठ पूजा 2023 कैलेंडर (Chhath Puja 2023 Calendar)



  • नहाय खाय - 17 नवंबर 2023, शुक्रवार

  • खरना - 18 नवंबर 2023, शनिवार

  • छठ पूजा 2023 (संध्या अर्घ्य) - 19 नवंबर 2023, रविवार

  • उगते सूर्य को अर्घ्य - 20 नवंबर 2023, सोमवार


छठ पूजा की 10 जरुरी बातें (Chhath Puja 10 Important Things)


36 घंटे का निर्जला व्रत - छठ का पर्व चार दिन तक चलता है नहाय खाय से इसकी शुरुआत होती है. खरना के भोजन ग्रहण करने के बाद ये व्रत शुरू हो जाता है. ऊषा अर्घ्य देने के बाद ही इस व्रत का पारण किया जाता है.


छठ पूजा में किन देवी-देवता की पूजा होती है - छठ पूजा के पर्व में सूर्य देव, उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा. इसके अलावा सूर्य देव की बहन छठी मैया की पूजा का विधान है. कहा जाता है इस दौरान सूर्य देव की उपासना करने से मान सम्मान और तरक्की मिलती है.


छठी मैया कौन है - शास्त्रं के अनुसार छठी मैया यानि षष्ठी मैया संतानों की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती है. प्रकृति ने अपने आप को छह भागों में बांटा है. इसमें छठा अंश सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है. छठ माता ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं.


छठ पूजा में डूबते सूर्य को अर्घ्य क्यों देते हैं - शास्त्रों में सूर्योदय के वक्त सूर्य की पूजा का विधान है लेकिन छठ पूजा में अस्तगामी सूर्य यानि डूबते सूर्य को भी जल अर्पित किया जाता है. छठ पर्व में पहले डूबते और बाद में दूसरे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का यही संदेश है कि जो डूबा है, उसका उदय होना भी निश्चित है, इसलिए विपरीत परिस्थितियों से घबराने के बजाय धैर्यपूर्वक अपना कर्म करते हुए अपने अच्छे दिनों के आने का इंतजार करें


कर्ण ने भी की थी छठ पूजा- पौराणिक कथा के अनुसार सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा कर छठ पर्व का आरंभ किया था. भगवान सूर्य के भक्त कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. आज भी छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है.


छठ पूजा में नहाय खाय क्या है -  व्रत के पहले दिन नहाय-खाय का होता है. इस दिन नमक वर्जित होता है. व्रत करने वाला स्नान के बाद शुद्ध होकर नए वस्त्र धारण करता है.  लौकी की सब्जी और चावल खासतौर पर चूल्हे पर पकाते हैं, पूजन के बाद प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं.


खरना के दिन क्या होता है - खरना छठ पर्व का दूसरा दिन होता है. इस दिन सूर्यास्त के बाद गाय के दूध की खीर बनाई जाती है. इसे ग्रहण करने के बाद व्रत शुरू हो जाता है.


संध्या अर्घ्य में क्या करें - शास्त्रों के अनुसार छठ पूजा वाले दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दौरान सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं. प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से सौभाग्य में वृद्धि होती है. प्रसाद ठेकुआ बनाता है और अर्घ्य के समय सूप में फल, केले की कदली और ठेकुआ भोग के रूप में रखकर सूर्य भगवान को अर्पित किए जाते हैं.


उदयीमान सूर्य को अर्घ्य - अंतिम दिन सूर्य को वरुण वेला यानि सुबह के समय अर्घ्य दिया जाता है, ये सूर्य की पत्नी उषा को अर्घ्य दिया जाता है. इससे वंश वृद्धि का वरदान मिलता है. उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न होता है.


छठ पूजा में व्रत पारण की विधि - छठ का व्रत खोलते वक्त सबसे पहले पूजा में चढ़ाया प्रसाद जैसे ठेकुआ, मिठाई, ग्रहण करें. फिर कच्चा दूध पीएं. कहते हैं भोग खाने के बाद ही व्रत पूरा माना जाता है.


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