Chhath Puja 2021: छठ पूजन के दौरान व्रतियां कोसी भरने की भी परंपरा निभाई जाती है. खासकर जोड़े में कोसी भरने को बेहद शुभ माना गया है. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है, जिसके पूरे होने पर उसे कोसी भरना पड़ता है. सूर्य षष्ठी की शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन करना बेहद शुभ और श्रेयकर माना गया है.


कोसी भरने की विधि
मान्यता है कि छठ पूजा में कोसी भरने से व्रतधारी का सौभाग्य बढ़ता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ऐसे में आप भी इस बार कोसी भरने जा रहे हैं तो इस परंपरा की विधि की जानकारी रखना जरूरी है. छठ व्रत करने वाले दंपति की कोई मन्नत या मनोकामना पूरी होती है तो इसकी खुशी में वह कोसी भरते हैं. षष्ठी की संध्या सूर्य को अर्घ्य देकर घर में या छत पर कोसी भरने की परंपरा निभाई जाती है.


गन्ने से बनता है छत्र


छठ पूजा से पहले कम से कम चार या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाया जाता है. एक लाल कपड़े में ठेकुआ, फलों का अर्कपात, केराव आदि रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है. फिर छत्र के अंदर मिट्टी से बना हाथी रखा जाता है, जिसके ऊपर घड़ा रख दिया जाता है. अब मिट्टी से बने हाथी को सिंदूर लगाकर घड़े में मौसमी फल, ठेकुआ, अदरक, सुथनी आदि सामग्रियां रख दें. कोसी पर एक दीया जला लें फिर कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरे सूप, डलिया, तांबे के पात्र और मिट्टी का ढक्कन रखकर दीप जलाएं. अग्नि में धूप डालकर हवन करते हुए छठी मइया के सामने माथा टेककर आशीर्वाद मांगा जाता है. अगली सुबह यही प्रक्रिया नदी के घाट पर दोहराई जाती है. यहां महिलाएं मन्नत पूरी होने की खुशी में मां के गीत गाते हुए छठी मां का आभार जताती हैं.


पूरी रात जागता है परिवार


कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस राज रतजगा भी करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं, तो पुरुष भी इस कोसी की सेवा करते हैं. इसे 'कोसी सेवना' भी कहते हैं. जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है.


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