वर्ष के प्रत्येक माह में एक विशेष खाद्य पदार्थ की मनाही हमारे मनीषियों ने की है. माघ माह में मिश्री खाने को निषेध बताया गया. माघी पूर्णिमा के साथ माघ माह बीत गया है. फाल्गुन माह में चने को खाना निषेध बताया गया है. कहा गया है कि इसके सेवन से व्यक्ति बीमार तो पड़ ही सकता है, साथ ही कालग्रास भी बन सकता है.


फाल्गुन माह उत्साह उमंग के लिए जाना जाता है. चहुंओर वसंती रंग की बहार होती है. फूले से पेड़ पौधे लदे होते हैं. चना बूट भी बहुतायत में हरे और कच्चे उपलब्ध होते हैं. आयुर्वेेद में कच्चे पदार्थाें के सेवन पर अधिकांशतः रोक है. पका हुआ भोजन ही श्रेष्ठ बताया गया है. ऐसे में चने का सेवन खासकर कच्चे चने खाने पर रोक विद्वानों ने लगाई है. इसके साथ ही मौसम में बदलाव भी चने के सेवन को निषिद्ध बताता है.


फाल्गुन माह होली की पूर्णिमा तक है. होली की पूर्णिमा के दिन होली की पवित्र अग्नि में चने और गेहूं की बालियों को भूनकर खाना आरंभ किया जाता है. इससे पहले इन्हें नहीं खाया जाना चाहिए.


चने के समान ही गेंहूं की बाली, अन्य कच्चे व अधपके अन्न का प्रयोग निषिद्ध है.


किस माह में क्या न खाएं-



चैते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।
सावन साग, भादो मही, कुवांर करेला, कार्तिक दही।
अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना।
जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।