Ayurved And Chaturmas: आयुर्वेद और चातुर्मास के बीच है गहरा संबंध, जानें परंपराएं, मान्यताएं और नियम
Ayurveda And Chaturmas: 29 जून से चातुर्मास की शुरुआत हो रही है. चातुर्मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि चातुर्मास के चार महीने में भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करते हैं.
Ayurved And Chaturmas: इस साल पंचांग के अनुसार, चातुर्मास की शुरुआत देवशयनी एकादशी से होगी और इसका समापन देवउठनी एकादशी पर होगा. गुरुवार 29 जून 2023 से चातुर्मास शुरू हो जाएगा और 23 नवंबर 2023 को इसकी समाप्ति होगी.
अधिकमास लगने के कारण इस साल चातुर्मास चार महीने का नहीं बल्कि पांच महीने का होगा. धार्मिक दृष्टिकोण से चातुर्मास को बहुत ही पुण्यकारी माना गया है. लेकिन धार्मिक मान्यता के साथ ही आयुर्वेद में भी चातुर्मास के बारे में बताया गया है. जानते हैं चातुर्मास और आयुर्वेद के बीच क्या है संबंध.
भारतीय संस्कृति ऋषि-मुनियों की ही देन है. हमारे ऋषि मुनि पुराने समय के शोधकर्ता भी कहलाते हैं. क्योंकि ऋषि-मुनियों के तप, ज्ञान और खोज के कारण ही हमें भारतीय संस्कृति की अनमोल विरासत मिली. भारतीय सनातन संस्कृति को समृद्ध करने में ऋषि मुनियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आज आपको बताएं आयुर्वेद और चातुर्मास के बीच संबंध के बारे में.
चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास वह समय होता है जब हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. देव की अनुपस्थिति में पूरे चार महीने तक किसी तरह का शुभ-मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, जनेऊ संस्कार आदि नहीं होते हैं. लेकिन धर्म के साथ ही आयुर्वेद में भी चातुर्मास के महत्व के बारे में बताया गया है और इस दौरान कुछ चीजों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया है. जानते हैं आयुर्वेद के अनुसार चातुर्मास में किन चीजों से करें परहेज.
चातुर्मास और आयुर्वेद का संबंध
चातुर्मास में मांसाहार भोजन, मदिरा, पत्तेदार सब्जियां और दही से परहेज करना चाहिए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों चातुर्मास में इन चीजों का सेवन वर्जित माना गया है. इस बारे में आयुर्वेद में बताया गया है कि, चातुर्मास के चार महीने में मौसम में बदलाव होते हैं. सावन में बारिश होती है, भाद्रपद में आद्रता या नमी वाला मौसम होता है, आश्विन में जाती हुई गर्मी और कार्तिकमें ठंड के मौसम की शुरुआत होने लगती है.
ऐसे में इन चार महीनो में पाचन शक्ति भी कमजोर रहती है. क्योंकि मौसम में बदलाव के कारण शरीर और आसपास के तापमान में लगातार उतार-चढाव होता है. साथ ही इस समय रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया या वायरस भी बढ़ने लगते हैं. अगर आप इस समय अत्यधिक मसालेदार या तामसिक भोजन करेंगे तो भोजन सही ढंग से पचेगा नहीं और इससे कई तरह के रोग होने का खतरा बढ़ जाएगा. यही कारण है कि आयुर्वेद में सावन के महीने में पत्तेदार सब्जियां, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और इसे बने पदार्थ और कार्तिक में प्याज लहसुन और उड़द दाल नहीं खाने की बात कही गई है.
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