झारखंड के देवघर में स्थित प्रसिद्धि तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौंवा ज्योतिर्लिंग है. बैधनाथ देश का एक ऐसा ज्योतिर्लिं है, जो शक्तिपीठ भी है. मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वंय भगवान विष्णु ने की थी. मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है.
मंदिर के शीर्ष पर लगा है पंचशूल
वैसे तो आपने देखा होगा कि भगवान शिव के सभी मंदिरों में त्रिशूल लगा होता है. लेकिन देवघर के बैद्यनाथ मंदिर परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और अन्य सभी मंदिरों में पंचशूल लगे हैं. इसे सुरक्षा कवच माना गया है. ये महाशिवरात्रि से दो दिन पहने उतारे जाते हैं. इसके बाद महाशिवरात्रि से एक दिन पहले विधि-विधान के साथ उनकी पूजा की जाती है. और इसके बाद फिर पंचशूलों को स्थापित कर दिया जाता है. इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है.
मंदिर के पंचशूल को लेकर हैं ये मान्यताएं
मंदिर के शीर्ष पर लगे पंचशूल को लेकर माना जाता है कि त्रेता युग में रावण की लंकापुरी के द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में भी पंचशूल स्थापित था. वहीं, एक मत ये भी है कि रावण को पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना आता था, लेकिन ये भगवान राम के वश में भी नहीं था. विभीषण के बताने के बाद ही प्रभु श्री राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर पाए थे. ऐसा माना जाता है कि इस पंचशूल के कारण मंदिर पर आज तक किसी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ.
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