मां ब्रह्मचारिणी को अपर्णा भी कहा जाता है. उन्होंने तपस्या के दौरान पत्तों के भोजन का भी त्याग कर दिया था. मां ब्रह्मचारिणी ने शिव आराधना के माध्यम से तपश्चर्या का तरीका और लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव सिखाती हैं.


श्वेत वसना मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में माला और एक हाथ में कमंडल है. मां का यह स्वरूप शक्ति के साधकों में बल भरता है. नवरात्रि के दूसरे दिन चैत्र शुक्ल प़क्ष द्वितीया का दिन साधना के आरंभिक दिनों का ही अंश है. ऐसे मां का यह रूप उन्हें संबल प्रदान करता है. 


मां ब्रह्मचारिणी अनेकों वर्ष तक शिव की तपस्या की. शिवलिंग स्थापित कर विल्व पत्र चढ़ाए. स्वयं भोजन तक त्याग दिया. तत्पश्चात आदिश्वर देवों देव महादेव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा को पूरा किया. 


दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु|


देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||


मां की पूजा के लिए इस दिन मां ब्रह्मचारिणी के रूप का पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करें. उन्हें लाल फूल चढ़ाएं. कमल की माला पहनाएं. मिश्री का भोग लगाएं.


ऊं ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:


बता दें कि नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है. तृतीया को मां चंद्रघंटा, चतुर्थी को मां कूष्मांडा, पंचमी को मां स्कंदमाता, षष्ठी को मां कात्यायनी, सप्तमी को मां कालरात्रि
अष्टमी को मां महागौरी एवं नवमीं को मां सिद्धीदात्री की पूजा की जाती है.


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।