Dhanteras 2024: कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को ‘धनतेरस’ के नाम से जाना जाता है, जिसे छोटी दिवाली भी कहते हैं. इस दिन यमराज की प्रसन्नता के लिए घर के बहार दीपदान किया जाता है, ताकि घर में अकाल मृत्यु ना हो.


पद्म पुराण के उत्तरखंड के अध्याय 124 के अनुसार, कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को घर के बाहर यमराज के लिए दीप जलाना चाहिए. इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है. दीप जलाते समय यह मंत्र कहना चाहिए-


मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति ॥ (पद्म पुराण 124.5)


अर्थात् - 'मृत्यु', पाशधारी काल और अपनी पत्नी के साथ सूर्यनन्दन यमराज त्रयोदशी को दीप देने से प्रसन्न हों.


धनतेरस पर करें ये काम, नहीं करने पड़ेंगे यमलोक के दर्शन


कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को चन्द्रोदय के समय नरक से डरने वाले मनुष्यों को अवश्य स्नान करना चाहिये. जो चतुर्दशी को प्रातःकाल स्नान करता है, उसे यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता. अपामार्ग (ओंगा या चिचड़ा), तुम्बी (लौकी), प्रपुत्राट (चकवड़) और कट्फल (कायफल) – इनको स्नान के बीच में मस्तक पर घुमाना चाहिये. इससे नरक के भयका नाश होता है.


उस समय इस प्रकार प्रार्थना करे - 'हे अपामार्ग! मैं काँटे और पत्तों सहित तुम्हें बार-बार मस्तकपर घुमा रहा हूँ जिससे मेरे पाप हर लिए जाएं.' यों कहकर अपामार्ग और चकवड़ को मस्तक पर घुमाये. इसके बाद यमराज के नामों का उच्चारण करके तर्पण करें.


यमराज के नाम-मंत्र - यमाय नमः, धर्मराजाय नमः, मृत्यवे नमः, अन्तकाय नमः, वैवस्वताय नमः, कालाय नमः, सर्वभूतक्षयाय नमः, औदुम्बराय नमः, दनाय नमः, नीलाय नमः, परमेष्ठिने नमः, वृकोदराय नमः, चित्राय नमः, चित्रगुप्ताय नमः.


व्रत उत्सव चंद्रिका अध्याय 24 अनुसार लोग अपने मकानों तथा दूकानों के ऊपर घी तेल के दीये जलाते है. इस दिन भी दिवाली जैसी शोभा होती है परन्तु अल्पमात्रा में. संभवतः इसीलिये इसको छोटी दिवाली कहते हैं. इस दिन काशी के ठठेरी बाजार में इसकी शोभा देखने में आती है. वहां के दूकानदार अपने पीतल के बर्तन को साफ करके सजाते तथा कीमती साड़ियों को निकाल कर उनका प्रदर्शन करते हैं.


यह दृश्य बड़ा ही रमणीय तथा चित्ताकर्षक होता है. इस दिन नये बर्तन को खरीदना शुभ समझा जाता है और प्रायः सभी लोग छोटा या बड़ा बर्तन खरीदते हैं. लोगों का ऐसा विश्वास है कि इसदिन बर्तन ख़रीदने से लक्ष्मी (धन) का घर में वास होता है। इसीलिये इस तिथि को 'धनतेरस' कहते हैं- अर्थात् वह त्रयोदशी जिसदिन धन घर में आता है. शहरों में इस दिन दिवाली का छोटा रूप देखने को मिलता है .


धनतेरस का यमराज से संबंध


व्रत उत्सव चंद्रिका अध्याय 24 अनुसार,एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि मेरी आज्ञा के अनुसार जब तुम लोग प्राणियों के प्राण हरते हो तो क्या किसी समय तुम लोगों को किसी मनुष्य पर दया नहीं आती, यदि आती है तो कब और कहाँ  इस पर दूतों ने उत्तर दिया. हंस नाम का एक बड़ा भारी राजा था. वह किसी समय शिकार के लिये वन गया हुआ था. संयोगवश वह अपने साथियों से बिछुड़ गया और वन में इधर उधर भटकने लगा.


वन में घूमता घामता वह हेम नामक राजा के राज्य में चला गया. वहाँ हेम राजा ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया. उस समय दैवयोग से हेम राजा के यहाँ एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ था। परन्तु छठि जन्म के छठे दिन का (उत्सव ) के दिन देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि राजन् ! तुम्हारा यह लड़का चार दिन के बाद मर जायेगा.


यह सुन कर राजा बहुत ही दुःखी हुआ. राजा हंस को जो उस समय हेम राजा का अतिथि था. जब यह ज्ञात हुआ तो उसने हेमराज के पुत्र को मृत्यु से बचाने के लिये उसे यमुना की एक गुफा में छिपा कर रखा हैं. परन्तु युवा होने पर जब उसका विवाह हुआ तब हम लोगों (यमदूतों) ने ठीक चौथे दिन उसका प्राण हरण कर लिया. उस मंगलमय उत्सव के समय हम लोगों का यह काम अत्यन्त घृणित था और हम लोगों को उसके प्राण हरण करने में बड़ी दया आयी.


हम लोगों का हृदय अत्यन्त दुःखी हो गया। अतः हे स्वामी! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बतलाइये जिससे प्राणी इस प्रकार की अकास्मिक दुर्घटना से बच सके. इस बात को सुनकर यमराज ने इस दिन दीप दान देने का विधान बतलाया और कहा कि जो लोग मेरे लिये धनतेरस के दिन दीप दान और व्रत करेंगे उनकी असामयिक मृत्यु कदापि नही होगी.


लोकाचार मान्यताओं और परंपरा के अनुसार इस दिन कुबेर और धनवंतरी की पूजा भी होती हैं, हालांकि कुबेर और धनवंतरी पूजन धनत्रयोदशी के दिन करना चाहिए इसका विवरण पद्म पुराण या स्कंद पुराण आदि में नहीं मिलता पर क्योंकि यह पुरानी परंपरा हैं और हमारे पूर्वज इसे करते आ रहे हैं इसलिए कुबेर और धनवंतरी का पूजन भी करना चाहिए. मनुस्मृति 2.6 मेधातिथि भाष्य भी यही कहती हैं की अगर पुरानी परंपरा अच्छी हैं तो उसे स्वीकार करना चाहिए.


धनतेरस की पूजा विधि



  • इस दिन यमराज की पूजा की जाती है जिससे वे प्रसन्न रहें तथा अकाल मृत्यु का निवारण करते रहें.

  • धनतेरस के दिन हल से जुती हुई मिट्टी को दूध में भिगों कर सेमल वृक्ष की डाली में लगाये और उसको तीन बार अपने शरीर पर छिड़क कर कुंकुंम का टीका लगायें तथा पुनः कार्तिक स्नान करें.

  • प्रदोष के समय मठ, मन्दिर, कुंआ, बावली, बाग, गोशाला, तथा गजशाला आदि स्थानों में तीन दिन तक लगातार दीपक जलाये.

  • यदि तुला राशि का सूर्य हो तो चतुर्दशी और आमावस्या की शाम को एक जली लकड़ी लेकर तथा उसको घूमा कर पितरों को भी मार्ग दिखाने का विधान है.

  • इस प्रकार धनतेरस के दिन दीपदान तथा यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय जाता है. इसलिए मित्रों कृपया कर के यम दीप प्रज्वलित करना ना भूलें.


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