Dhuniwale Dadaji: कौन थे महान संत धूनीवाले दादाजी, जो चमत्कार से चने को बना देते थे सोना-चांदी
Dhuniwale Dadaji:धूनीवाले दादाजी भारत के महान संतों में एक हैं. इनकी समाधि खंडवा में है. देश-दुनिया के लोग इनके प्रति गहरी आस्था रखते हैं. भक्त धूनीवाले दादाजी को शिर्डी के साईं बाबा की तरह पूजते हैं.
Dhuniwale Dadaji: सनातन धर्म और भारत में कई साधु संत हुए. इनमें धूनीवाले दादाजी भी एक हैं, जिनका नाम भारत के महान संतों में लिया जाता है. लोग इन्हें धूनीवाले दादाजी या दादाजी धूनीवाले कहते हैं. भक्तों के बीच इनका स्थान ठीक वैसा ही है जैसा शिर्डी के साईं बाबा का. भक्त इन्हें भगवान शिव का अवतार भी मानते थे.
धूनीवाले दादाजी के जीवन से अधिक महिमा का है गुणगान
स्थानीय लोगों का मानना है कि, दादाजी का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गांव साईं खेड़ा में हुआ था. कहा तो यह भी जाता है कि, धूनीवाले दादाजी पेड़ से प्रकट हुए थे. दादाजी ने खेड़ा गांव में कई चमत्कार दिखाए और इसके बाद खंडवा आ गए. यहीं उन्होंने मार्गशीर्ष माह में 1930 में समाधि ले ली. इन्होंने जिस स्थान पर समाधि ली, वहीं इनका समाधि स्थल भी बनाया गया. भले ही धूनीवाले दादाजी का जीवन वृत्तांत प्रामाणिक रूप से उपलब्ध नहीं है. लेकिन इनकी महिमा और चमत्कार के गुणगान से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं.
कैसे पड़ा धूनीवाले दादाजी का ये नाम
धूनीवाले दादाजी का असली नाम केशवानंदजी महाराज था. हालांकि लोग इन्हें धूनीवाले दादाजी के नाम से ही जानते थे. इस नाम के पीछे की कहानी यह है कि, दादाजी प्रतिदिन पवित्र धूनी की अग्नि के समक्ष बैठकर ध्यान लगाते थे. इसलिए लोग इन्हें धूनीवाले दादाजी के नाम से जानने लगे. खंडवा शहर समेत देश-विदेश में धूनीवाले दादाजी के 27 धाम हैं, जहां अबतक निरतंर धूनी जल रही है. कहा जाता है कि, दादाजी ने सबसे पहले साईं खेड़ा और इसके बाद खंडवा में अपने हाथों से धूनी माई प्रज्वलित की थी. स्थानीय लोगों के अनुसार, जब दादाजी इस धूनी माई में चने डालते थे तो उनके चमत्कार से वो सोने-चांदी में बदल जाया करता था.
धूनीवाले दादाजी की समाधि के बाद कौन है उत्तराधिकारी
धूनीवाले दादाजी के शिष्य हरिहरानंद को लोग छोटे दादाजी के नाम से जानते हैं. इका नाम भंवरलाल था. जब ये खंडवा धूनीवाले दादाजी से मिलने आए तो दादाजी से बहुत आकर्षित हुए और अपना सारा जीवन उनके चरणों में समर्पित कर दिया. दादाजी ने भी इन्हें अपना शिष्य बना लिया और इनका नाम बदलकर हरिहरानंद रख दिया. धूनीवाले दादाजी की समाधि के बाद इन्हें ही उत्तराधिकारी बनाया गया.
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