Hindu Nav Varsh 2024: पश्चिम देशों में ग्रेगरियन कैलेंडर के अनुसार नववर्ष एक जनवरी को पड़ता है. ऐसे में यह नया वर्ष केवल डेट का बदलना मात्र ही है. लेकिन हिंदू संस्कृति मे वर्ष बदलने को नए संवत का प्रारंभ माना जाता है और इसके पीछे धार्मिक अथवा ऐतिहासिक कारण भी हैं.


जैसे आज की तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है, जिसे संवत्सर प्रतिपदा भी कहते हैं. ब्रह्म पुराण मे लिखा है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि कि रचना की थी. ब्रह्म पुराण का श्लोक है:–


"चैत्रे मासि जगत् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।"


इसी दिन ब्रह्माजी ने सब देवताओं को उनके हिस्से का कार्य आबंटित (बांटना) किया था. उस दिन से पृथ्वी के सब कार्य सूचारू रूप से चलने लगे. ऐसा ही उल्लेख अन्य ग्रंथों में भी मिलता है (अथर्व वेद के तीसरे अध्याय के दसवें सूक्त में).


इस दिन का मात्र इतना ही महत्व नहीं हैं, बल्कि भगवान विष्णु ने इसी दिन मत्स्यवतार भी लिया था. इसका उल्लेख स्मृति कौस्तुभ मे मिलता है कि भगवान ने रेवती नक्षत्र मे जन्म लिया.


कृते च प्रभवे चैत्रे, प्रतिपच्छुक्लपक्षगा।
रेवत्यां योर्गाविष्कम्भे दिवा द्वादश नादिकः॥
मत्स्यरूपः कुमार्या च अवतीर्णो हरिः स्वयम् ।


और इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत के नाम से नव वर्ष के प्रथम दिन के रूप मे स्थापित किया था. इसी विक्रम संवत के दो हज़ार साल पूरे हुए कुछ वर्ष पहले. इसी दिन सतयुग का प्रारम्भ भी माना गया है. हिंदू नववर्ष और अंग्रेज़ी नववर्ष में बहुत अंतर है. हिंदू नववर्ष का इतिहास और धर्म ही हमारी संस्कृति का परिचायक है. इसलिए यह शुभ दिन हमारे लिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है. और यह चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिन भी है.


वैदिक और विक्रम संवत के नववर्ष में अंतर


लेकिन वैदिक और विक्रम संवत के नव वर्ष में थोड़ा अंतर है. वैदिक नववर्ष चैत्र "शुक्ल प्रतिपदा" से शुरू नहीं होता है,  वैदिक नव वर्ष दिसंबर के आसपास ठंड में माघ मास में शुरू होता है. "चैत्र मास में ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना थी" इस वचन को रखते हैं किन्तु इसमें कहीं नववर्ष के आरम्भ होने की बात नहीं है. नववर्ष के प्रारम्भ होने में निम्न वचन उपलब्ध हैं जिनमें माघ मास को ही प्रथम दिवस माना गया है:-


वर्षाणामपि पञ्चानामाद्यः संवत्सरः स्मृतः ।
ऋतूनां शिशिरश्चापि मासानां माघ एव च।।
पक्षाणां शुक्लपक्षश्च तिथीनां प्रतिपत् तथा।
अहोरात्र विभागानामहश्च चापि प्रकीर्तितम् ।। (ब्रह्माण्डपुराण पूर्वभाग 24.141)


यह लिङ्ग पुराण 1.61.52 में भी वर्णित है. वैदिक और विक्रम संवत के नव वर्ष भिन्न हैं. हालांकि अधिकतर पारंपरिक आचार्य विक्रम संवत के अनुसार ही चलते हैं. आप भी धूम–धाम से अपना नव वर्ष मनाएं.


व्रत उत्सव चंद्रिका अनुसार, इस दिन प्रातः उठकर नहा धोकर एक वेदी का निर्माण करें. उसपर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर हल्दी या केसर से अष्टदल कमल बनाएं. उसपर मूर्ति स्थापित करके धूप दीप नैवेद्य से संकल्पित होकर पूजन करें. ब्रह्मा का आवाहन करके मंगल कामना करें.


भगवंस्त्वत्प्रसादेन, वर्ष क्षेममिहास्तु मे । संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः॥


घर को वंदनवार और पताकों से सजा लें. स्वयं एक समय ही खाएं. अल्बता उस दिन प्रातः मे नीम कि पतें अवश्य चबाएं. क्योंकि ग्रीष्म का आगमन हो रहा है. रक्त विकार से बचने का यह सरल उपाय है.


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