नई दिल्ली: दिवाली का त्योहार इस बार 27 अक्टूबर (रविवार) को है. दिवाली से पहले ही लोगों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में हम यहां आपको बता रहे हैं कि दिवाली क्यों मनाई जाती है और इस त्योहार का क्या महत्व है. दीपावली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं और विभिन्न मान्यताएं हैं. इन्हीं पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को मनाने में विभिन्नताएं पाई जाती हैं.


अधिकांश लोगों का मानना है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जब रावण वध कर अपने 14 सालों के वनवास को पूरा कर अयोध्या लोटे तो नगरवासियों ने उनका स्वागत दीप जलाकर किया. इसी के बाद से इस दिन को रोशनी के त्योहार दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा.


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में हिरण्यकश्यप का वध किया तो पीड़ित प्रजा ने दीप जलाकर इस खुशी का इजहार किया था. तब से भी दिवाली मनाए जाने की मान्यता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दिवाली से एक दिन पहले चतुर्दशी के दिन किया था. इसके बाद गोकुलवासियों ने खुशी में अगले दिन (अमावस्या) को प्रकाश फैलाकर खुशियां मनाई थी.


दिवाली के दिन इसलिए की जाती है माता लक्ष्मी की पूजा


मान्यताओं के अनुसार दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर से प्रकट हुई थीं. माता लक्ष्मी के साथ आरोग्यदेव धन्वंतरि और भगवान कुबेर प्रकट हुए थे. इसलिए दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. एक अन्य मान्यता के अनुसार देवी महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव को महाकाली के पास आना पड़ा था.


दरअसल, राक्षसों का वध करने के बाद भी देवी काली का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था. इसके बाद भगवान शिव स्वयं महाकाली के चरणों में लेट गए. शिवजी के स्पर्श से महाकाली का गुस्सा शांत हो गया. इसी के बाद देवी महाकाली के शांत रूप माता लक्ष्मी की पूजा इस दिन से शुरुआत हुई.


इन कथाओं और मान्यताओं के अलावा दीपक को भारतीय संस्कृति में सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है. दीपक खुद जलता है और प्रकाश फैलाता है. दीपक की इसी विशेषता के कारण इसे ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है.


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