Diwali 2023: इस वर्ष रूप चतुर्दशी और दीपावली एक ही दिन 12 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी. बात करें दीपावली की तो, दीपावली पर्व पर पूजा करते समय कुछ विशेष बातों का आप ध्यान रखें तो निश्चित रूप से महालक्ष्मी माता प्रसन्न होकर आपके द्वार आएगी और वर्ष भर अन्न-धन के भंडार भरे रहेंगे. महालक्ष्मी की पूजा के लिए जान लें ये विशेष बाते...


  • सबसे पहले तो यह कि पूजा में बैठें तो जोड़े से यानी पति-पत्नी दोनों बैठें और पूजन करें. क्योंकि पूजा का लाभ तभी मिलता है जब जोड़े से पूजन किया जाए. आपको ध्यान रखना है कि जब माता सीता रावण के यहां कैद थी तब उनकी मुक्ति के लिए युद्ध में विजय की कामना के लिए श्रीराम ने रामेश्वर में पूजा की तो सोने की सीता को बना कर गठबंधन कर फिर पूजा की. क्यों? क्योंकि गठबंधन का अर्थ ही है कि एक का कर्म में दोनों भागीदार बनें. पत्नी को वामंगी कहते हैं लेकिन पूजन के समय पत्नी वाम नहीं दाहिनी ओर बैठती है. 

  • दूसरा अग्नि को बनाएं पूजा का साक्षी भले ही पूजन के समय पूरे घर में दीपक जगमग कर रहे हो, लेकिन पूजन प्रारंभ करने से पूर्व आपको घी का दीपक प्रज्जवलित करना है क्यों? क्योंकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बनते हैं. 

  • तीसरा पूजन के समय परिवार के सभी सदस्य सज-धज कर बैठें, नए वस्त्र धारण करें. संभव हो तो पूजा आधी रात के बाद करें. मध्य रात्रि के समय ही महानिशा आती है और महानिशा रात्रि में की पूजा-साधना सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करती है. इसे आप ध्यान से समझ लें. दीपावली की रात्रि के चार प्रहर होते हैं. प्रथम निशा, दूसरा दारूण, तीसरा काल और चौथा महा. सामान्यतः दीपावली की रात्रि में आधी रात के बाद यानी लगभग डेढ बजे के आस पास का समय महा निशा का समय निरूपित किया गया है. मान्यता यह है कि इस कालावधि में महालक्ष्मी की साधना करने से अक्षय धन-धान्य की प्राप्ति होती है. महालक्ष्मी से संबंधित ग्रन्थों में यह उल्लेख आता है कि दीपावली की रात्रि को आधी रात के बाद जो दो मुहूर्त का समय है, उसको महानिशा कहते है. ज्योतिषीय गणना की बात करें तो दीपावली के दिन सूर्य व चन्द्रमा दोनों ही ग्रह तुला राशि में होते हैं. तुला राशि के स्वामी शुक्र ग्रह हैं जो सुख-सौभाग्य के कारक ग्रह हैं. यानी जब सूर्य एवं चन्द्रमा तुला राशि के होते हैं तब महालक्ष्मी पूजन से धन-धान्य की प्राप्ति होती है. 

  • उदय तिथि के अनुसार 12 नवम्बर को दीपावली पूजन के लिए मुहूर्त इस बार सिंह लग्न रात्रि 12 बजकर 28 मिनट से रात्रि 2 बजकर 43 मिनट तक है. देर रात संभव नहीं हो तो फिर वृषभ लग्न में शाम 6 बजे से 7 बजकर 57 मिनट के बीच करें. 


ऐसे करें दीपावील पर पूजन

 

सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें. फिर पूजन कलश स्थापना करें, लक्ष्मी प्रिय कल्पों की पूजा करें जैसे कौड़ी, शंख आदि. धनतेरस के दिन जिन नये सिक्कों को खरीदा है उनकी पूजा करें. ध्यान रखें, इस पूजा के समय आप घर में जितने भी पुराने सिक्के हैं, जो आपने पिछली धनतेरसों पर खरीदे हैं, उन्हें भी नये सिक्कों के साथ अभिषेक कर पूजा करें. साथ ही घर में जितनी सुहागिने हैं, उनके पहनने के जेवर आदि भी पूजा में शामिल करें एवं रात्रि भर उन्हें पूजन सामग्री के साथ पूजा स्थल पर ही रहने दें.


पूजा के बाद महालक्ष्मी को अंजरी मुद्रा बनाकर सुख-समृद्धि का वर मांगे. याद रखें, महालक्ष्मी को हाथ नहीं जोडने हैं, अंजरी मुद्रा बनानी है. फिर नैवेद्य को प्रसाद रूप में ग्रहण करें. पहले महालक्ष्मी के समक्ष ही यानी पूजा स्थल पर एक-दो पटाखे शगुन रूप से छोड़ें और फिर बाहर जाकर पटाखे छोडें. पूजन सामग्री को वहीं छोडकर आप पूजा कक्ष से बाहर आ जाएं. याद रखें कि आपको न तो हाथ जोड़ने हैं और न ही पूजा समाप्ति के पश्चात आरती उतारनी है. हाँ, आरती के स्थान पर संभव हो तो स्वस्ति वाचन कर लें.

 

दीपावली पूजा में रखें इन बातों का विशेष ध्यान


  • मां लक्ष्मी जिस तस्वीर में खड़ी हो और आशीर्वाद दे रही हो, वो तस्वीर कभी नहीं लगानी चाहिए. क्योंकि वो मां लक्ष्मी का स्थिर स्वरूप नहीं है. उल्लू मां का वाहन है, जो रात के समय क्रियाशील रहता है और निर्जन स्थानों पर रहता है. जिस तस्वीर में मां लक्ष्मी उल्लू पर विराजित है, वो भी तस्वीर ना लगाएं. 

  • मां लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं उनमें से किसी भी स्वरूप को घर में स्थान दे सकते हैं. लेकिन गृहस्थ लोगों के लिए बैठी हुई लक्ष्मी संपन्नता का प्रतीक है, घर में ऐसी ही तस्वीर लगाएं. ऑफिस, फैक्ट्री पर या जहां मशीनरी का कार्य अधिक है वहां खड़ी लक्ष्मी की ही मूर्ति लगानी चाहिए.  

  • ना करें आरती, एक विषेष बात ध्यान रखें कि दीपावली पूजन करने के बाद माता महालक्ष्मी की आरती नहीं करनी चाहिए. मैं ऐसा क्यूं कह रहा हूं? क्योंकि महालक्ष्मी और श्री गणपति ये दोनों ही आद्यो देव हैं, यानी आदी देव. ऐसी मान्यता है कि पूजन के बाद जब आरती की जाती है तो देव विसर्जन हो जाते है. अर्थात जिस लोक से देवता आए थे, वे अपने लोक लौट जाते हैं. लेकिन आदी देव होने के कारण इन्हें विदा नहीं किया जा सकता है. इनकी आवष्यकता तो जन्म से मृत्यु तक होती है. इसी कारण आरती नहीं की जानी चाहिए. हां, यदि पंडितजी से पूजा करवाई है तो आप पंडितजी से कहें कि आरती के बजाय आप स्वस्तीवाचन कर जल से आरती करके यजमान को आशीर्वाद दें. आप स्वयं भी यदि पूजा कर रहे हैं तो आरती के स्थान पर स्वस्तीवाचन ही करें.

  •  न जोड़े महालक्ष्मी को हाथ! महालक्ष्मी की पूजा में उन्हें हाथ भी नहीं जोड़ना चाहिए. हाथ जोड़ना वैसे तो आदर का सूचक है. किसी के आगमन पर हम हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं तो विदा के समय भी हम हाथ जोड़ते हैं. यानी हाथ जोड़ना विदा देने का सूचक भी है. महालक्ष्मी तो दात्री हैं, सदैव अपने भक्तों पर कृपा करके कुछ न कुछ, प्रदान ही करती हैं. 

  • सुख, समृद्धि, धन-धान्य, शांति-संतोष, यष-कीर्ति, विद्या, तप, बल, दान, ज्ञान, कौशल, सद्गुण, धर्म, अर्थ, मोक्ष सभी कुछ देने वाली, महालक्ष्मी ही तो हैं. ऐसी महालक्ष्मी को हम विदा कैसे करें? इसीलिए महालक्ष्मी पूजन के पष्चात अंजुली मुद्रा बनाकर शीष झुकाएं और वर मांगे. आपकी कामना पूर्ण होगी और सदा के लिए महालक्ष्मी का आपके घर पर स्थाई वास होगा. 

  • दिवाली की पूजा के बाद पूजा कक्ष को बिखरा हुआ ना छोड़ दें, पूरी रात एक दीया जलाए रखें और उसमें घी डालते रहें.

  • लक्ष्मी पूजन के वक्त पटाखे ना जलाएं. लक्ष्मी पूजा के बाद ही पटाखे जलाने चाहिए.


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