(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Shivling Parikrma: क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा और क्यों नहीं लांघी जाती जलाधारी, जानिए वजह
Shivling Parikrma: हिंदू धर्म में शिव के दोनों रूपों – शिव की मूर्ति और शिवलिंग की पूजा के बाद परिक्रमा करने की परंपरा है. परंतु शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही की जाती है. क्यों? आइये जानें.
Shivling Parikrma: सनातन धर्म में ही नहीं बल्कि अन्य कई धर्मों में भी परिक्रमा करने की परंपरा है. हिंदू धर्म में तो परिक्रमा का बहुत ही महत्त्व है. इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. शास्त्रों में मान्यता है कि परिक्रमा करने से कई जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है. शास्त्रों में इस मंत्र का उल्लेख है:–
मंत्र:
‘यानि कानिच पापानि ज्ञाता ज्ञात क्रतानि च, तानि सर्वाणि नश्यंति प्रदक्षिणाम पदे पदे. {अर्थात परिक्रमा के एक-एक पद चलने से ज्ञात-अज्ञात अनेकों पापों का नाश होता है.}
हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग देवी-देवताओं की पूज करने के बाद अपने ही स्थान पर या संबंधित मंदिर की पूरी परिक्रमा करते हैं, परन्तु शिवलिंग की पूजा करने के बाद उपासक शिवलिंग की आधी परिक्रमा करते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक़, शिवलिंग पूजा के नियम अलग हैं, इनकी कुछ मर्यादाएं भी हैं. शिवलिंग की आधी परिक्रमा को शास्त्र संवत माना गया है. इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है.
हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार परिक्रमा के दौरान जलाधारी को लांघना वर्जित है. इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों वजहें हैं. आइये जानें इसक बारे में.
धार्मिक वजह
शास्त्रों के मुताबिक शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. शिवलिंग पर जल चढ़ाने से जल पवित्र हो जाता है. यह जिस मार्ग से निकलता है उसे निर्मली, सोमसूत्र और जलाधारी कहते हैं.
मान्यता है कि शिवलिंग इतनी शक्तिशाली होती है कि उस पर जल चढ़ाने से जल में शिव और शक्ति की उर्जा के कुछ अंश समाहित हो जाते हैं. प्रक्रम के समय जब कोई इसे लांघता है तो उसकी टांगों के बीच से शिवलिंग की ऊर्जा उसके अंदर प्रवेश कर जाती है. इसकी वजह से उसमें वीर्य या रज संबंधित शारीरिक परेशानियां पैदा हो जाती है.
वैज्ञानिक वजह
भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप देखें से पता चलता है कि इन शिवलिंगों के आसपास के क्षेत्रों में रेडिएशन पाया जाता है. इसके साथ शिवलिंग का आकार और और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में काफी समानता है. ऐसे में शिवलिंग पर चढ़े जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा समाहित हो जाती है कि इसे लांघने से व्यक्ति को बहुत नुकसान हो सकता है.