Raksha Bandhan Stories: आखिर क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार , क्या है इससे जुड़ी कहानियां
Raksha Bandhan 2022: भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार इस बार 11 अगस्त को मनाया जाएगा.आइये जानते है कि क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार? और क्या है इससे जुड़ी कुछ लोक कथाएं?
Raksha Bandhan Stories: भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन पर्व का खास महत्व है. इस दिन भाई अपनी बहनों के हाथों में राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है.धार्मिक ग्रंथों में रक्षाबंधन को लेकर कई प्रकार की पौराणिक कथाओं के बारे में बताया गया है.आइए जानें इसकी शुरुआत कैसे हुई और इससे जुड़ी कौन सी कहानियां प्रचलित हैं.
कृष्ण और द्रौपदी
त्रेता युग में महाभारत की लड़ाई से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण की उंगली में अपनी साड़ी से टुकड़ा फाड़ कर बांधी थी, बदले में श्री कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत में रक्षा करने की कसम दी थी. उसी चीर बांधने के कारण कृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा की इसलिए रक्षाबंधन का त्योहार बनाया जाता है.
इंद्र और इंद्राणी की राखी
माना जाता है कि एक बार असुरों और देवताओं में युद्ध चल रहा था.आसुरी शक्तियां मजबूत थी. उनका युद्ध जीतना तय माना जा रहा था. इंद्र की पत्नी इंद्राणी को अपने पति और देवों के राजा इंद्र की चिंता होने लगी. इसलिए उन्होंने पूजा-पाठ करके एक अभिमंत्रित रक्षा सूत्र बनाया और उसे इंद्र की कलाई पर बांध दिया। कहते हैं इसके बाद देवता युद्ध जीत गए और उसी दिन से सावन की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाया जाने लगा. हालांकि यह इकलौती घटना है, जिसमें एक पत्नी ने पति को रख रक्षाबंधन बांधा था. लेकिन आगे वैदिक काल में यह बदल गया और यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते में तब्दील हो गया.
महारानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं
चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से अपने राज्य को बचाने के लिए सम्राट हूमायूं को राखी भेजी और उनसे वह अपनी रक्षा की गुहार लगाई. हुमायूं ने भी उनकी राखी स्वीकार की और अपने सैनिकों के साथ उनकी रक्षा के लिए चित्तौड़ की ओर रवाना हो गया. हालांकि हुमायूं के चित्तौड़ पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने आत्महत्या कर ली.
यम और यमुना
एक पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की. गंगा ने यह सूचना यम तक पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं. यम युमना से मिलने आए. यम को देखकर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाएं.यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं. इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास आए. यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गदगद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया.भाई बहन के इस प्रेम को भी रक्षा बंधन के हवाले से याद किया जाता है.
देवी लक्ष्मी और राजा बलि
धार्मिक कथाओं के अनुसार जब राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था. तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली थी. राजा ने तीन पग धरती देने के लिए हां बोल दिया था. राजा के हां बोलते ही भगवान विष्णु ने आकार बढ़ा कर लिया है और तीन पग में ही पूरी धरती नाप ली है और राजा बलि को रहने के लिए पाताल लोक दे दिया. तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा कि भगवन मैं जब भी देखूं तो सिर्फ आपको ही देखूं. सोते जागते हर क्षण मैं आपको ही देखना चाहता हूं. भगवान ने राजा बलि को ये वरदान दे दिया और राजा के साथ पाताल लोक में ही रहने लगे. भगवान विष्णु के राजा के साथ रहने की वजह से माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं और नारद जी को सारी बात बताई. तब नारद जी ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप राजा बलि को अपना भाई बना लीजिए और भगवान विष्णु को मांग लीजिए.नारद जी की बात सुनकर माता लक्ष्मी राजा बलि के पास रोते हुए गई राजा बलि ने जब माता लक्ष्मी से रोने का कारण पूछा तो मां ने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है इसलिए वो रो रही हैं. राजा ने मां की बात सुनकर कहा कि आज से मैं आपका भाई हूं. माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को राखी बांधी और उनके भगवान विष्णु को मांग लिया है. ऐसा माना जाता है कि तभी से भाई- बहन का यह पावन पर्व मनाया जाता है.
पोरस और एलेग्जेंडर
सिकंदर ने 329 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था लेकिन सिकंदर की पत्नी को पता था कि भारत में पोरस से ही एक ऐसा राजा है, जिससे सिकंदर हार सकता है। इस वजह से उन्होंने पोरस को राखी भेजी और युद्ध में अपने पति की जान मांगी और पोरस ने भी उनकी राखी स्वीकार की और युद्ध में सिकंदर की जान न लेने की कसम खाई।
राखी और टैगोर
नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर ने बंगाल विभाजन के बाद हिंदुओं और मुसलमानों से एकजुट होने का आग्रह किया था और दोनों समुदायों से एक-दूसरे की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधने का निवेदन किया था.उन्होंने राखी को लेकर एक नया संदेश दिया उन्होंने कहा कि राखी मानवता के लिए एक ऐसा बंधन है, जिससे हम एक-दूसरे की रक्षा करने का वचन ले सकते हैं.उन्होंने बंगाल में राखी महोत्सव का आयोजन भी कराया था, जिसमें सभी एक-दूसरे को राखी बांधकर एक-दूसरे की रक्षा का वचन दे रहे थे.
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