सुहागिन स्त्रियों के लिए करवा चौथ के पर्व का बहुत ही महत्व है. हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं. और मां करवा, माता पार्वती व चंद्र देव से अमर सुहाग का वरदान मांगती हैं. इस बार करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर को मनाया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले करवा चौथ(Karva Chauth) का व्रत किसने और कब किया था. आज हम इसी बारे में आपको बताने जा रहे हैं.


माता पार्वती ने सर्वप्रथम किया था व्रत 


पौराणिक कथाओं में ज़िक्र है कि करवाचौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने किया था वो भी भगवान शिव के लिए. और तभी से इस व्रत की परंपरा शुरु हो गई. लेकिन माता पार्वती ने ये व्रत क्यों किया इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है. जो इस प्रकार है - कहते हैं जब एक बार देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ तो ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने का सुझाव दिया था. तब कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को सभी देवियों ने व्रत किया जिसमें देवों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई।


द्रौपदी ने भी रखा था करवा चौथ का व्रत


द्वापर युग में भी द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा था. कहते हैं जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे तो उस दौरान पांडवों को कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ा. चूंकि द्रौपदी कृष्ण को अपना सबसे अच्छा मित्र मानती थीं इसीलिए उन्होंने इसके लिए सुझाव मांगा. तब भगवान कृष्ण ने उन्हें कार्तिक मास की चतुर्थी को व्रत करने को कहा था। तब द्रौपदी ने  श्रद्धा के साथ इस व्रत को किया, और इसके बाद पांडवों के सभी कष्ट दूर हो गए. 


इसीलिए होती है चंद्रमा की पूजा


करवा चौथ के व्रत के दिन व्रती चंद्र देव की पूजा करने के बाद ही अपना उपवास खोलती हैं. लेकिन आखिर चंद्रमा की पूजा क्यों की जाती है. दरअसल, चंद्रमा को आयु वृद्धि का कारक माना जाता है. यानि चंद्रमा की पूजा से दीर्घायु होने का वरदान प्राप्त होता है. इसीलिए करवा चौथ के दिन सुहागिन स्त्रियां चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं.