मंदिर अर्थात् देवालय निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत शास्त्रोक्त ढंग से पूरी की जाती है. घर में जो मंदिर बनाए जाते हैं उनमें सबसे महती बात यह है कि घरेलु देवालय अत्यंत छोटे होने चाहिए. औसत अनुपात के नियम को अपनाया जाए तो हजार स्क्वायर फीट के घर में एक फीट से बड़ा मंदिर नहीं होना चाहिए. ऐसे में मंदिर को शाम को पट से ढंका भी जाना चाहिए.


घर में मंदिर होने पर सुबह-शाम दीपक धूप बाती का नियम पालन करना आवश्यक माना गया है. विद्वानों का मत है कि अव्वल तो घर में मंदिर रखने से आमजन को बचना चाहिए. पूजाकर्म के लिए निकट के देवालय जाना चाहिए.


घर में बड़ा मंदिर स्थापित करने से मंदिर नियम पालन की जवाबदेही घर के मुखिया पर बढ़ जाती है. ऐसे में छोटी-बड़ी चूकों का असर उस पड़ता है फिर चाहे घर कोई व्यक्ति ऐसा कर रहा हो.


घर में बड़े मंदिर के बनने से मंदिर के गर्भगृह का प्रभाव बढ़ जाता है. ऐसे में अधिक स्थान पर पवित्रता और धार्मिक उर्जा के संचार से सामाजिक एवं पारिवारिक कार्याे पर असर पड़ता है.


छोटे मंदिर के निर्माण में वास्तु और दिशा का प्रभाव भी अधिक नहीं रखना पड़ता है. बड़े मंदिर की स्थिति में उत्तर और पूर्व दिशा को वरीयता देना लगभग अनिवार्य हो जाता है. लेकिन अक्सर घरों में पूर्ण वास्तु नियमों का पालन कठिनाई से ही हो पाता है.