Mahabharat: कृष्ण की कृपा से नहीं बल्कि दुर्वासा के वरदान से बची थी द्रौपदी की लाज
नदी में स्नान के दौरान दुर्वासा के वस्त्र बह गए थे. इस पर द्रौपदी ने अपना आंचल का टुकड़ा उन्हें दिया, जिससे खुश होकर दुर्वासा ने द्रौपदी को वरदान दिया था कि ऐसा ही वस्त्र जरूरत पर तुम्हारे काम आएगा.
Mahabharat : अपने क्रोध के लिए मशहूर दुर्वासा ऋषि पांडवों के आश्रम पहुंचे तो नदी में स्नान के दौरान उनके वस्त्र बह गए, इस पर द्रौपदी ने अपने आंचल का एक टुकड़ा उन्हें पहनने को दिया, जिससे खुश होकर दुर्वासा ने उन्हें वरदान दिया था कि ऐसा ही वस्त्र जरूरत पर उनके बहुत काम आएगा.
महाभारत काल में महर्षि दुर्वासा हस्तिनापुर आए तो उनके क्रोध के डर से दुर्योधन ने उनकी खूब सेवा की, लेकिन जब दुर्वासा उसे आशीर्वाद देकर लौटने लगे तो कुटिलता के चलते दुर्योंधन ने उन्हें जंगल में रह रहे पांडवों की कुटिया में जाकर आतिथ्य कराने का अनुरोध किया. दुर्योधन ने ही उन्हें वहां भेजा था और वह भी ऐसे समय जबकि द्रौपदी समेत सभी पांडव भोजन करने के बाद विश्राम कर रहे थे.
दुर्वासा अपने हजारों शिष्यों को लेकर पांडवों की कुटिया में पहुंच गए और द्रौपदी को भोजन तैयार करने का आदेश देकर स्नान के लिए नदी में चले गए. इस दौरान कुटिया में रखा अक्षय पात्र खाली हो चुका था. ऐसे में कृष्ण ने पहुंचकर उसमें से चावल का एक टुकड़ा खाकर डकार ली, जिससे नदी में पड़े-पड़े ही दुर्वासा समेत उनके हजारों शिष्यों का पेट भर गया.
इस दौरान स्नान करते समय महर्षि दुर्वासा का वस्त्र नदी के बहाव में बह गया. कुछ ही दूर नदी में द्रौपदी भी स्नान कर रहीं थीं, उन्हें शर्मिंदगी महसूस होते देखकर द्रौपदी ने तत्काल अपने आंचल से एक टुकड़ा फाड़कर दुर्वासा ऋषि को दे दिया. इससे खुश होकर महर्षि ने द्रौपदी को वरदान दिया कि यह वस्त्रखण्ड बढ़कर एक दिन तुम्हारी लज्जा को बचाएगा. चौपड़ के दौरान दांव पर लगाए जाने के बाद हार पर द्रौपदी का चीरहरण किया गया तो द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का आह्वान किया तो दुर्वासा से मिला वरदान उनके काम आया और उनकी साड़ी इतनी लंबी होती गई कि उसे खींचते-खींचते दुशासन भरी सभा में बेहोश हो गया.
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