Durga Puja 2023: शारदीय नवरात्रि की षष्ठी तिथि से बंगाली समुदाय की दुर्गा पूजा शुरू हो जाती है. इस साल दुर्गा पूजा 20 अक्टूबर 2023 से आरंभ हो रही है. दुर्गा पूजा का पहला दिन कल्पारंभ के नाम से जाना जाता है.


शास्त्रों के अनुसार इस दिन देवी दुर्गा, मां सरस्वती और देवी लक्ष्मी कार्तिकेय-गणेश जी के साथ धरती पर आती हैं. कल्पारम्भ पूजा सुबह के शुभ मुहूर्त में की जाती है. बंगाल में इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा से पर्दा हटाया जाता है. आइए जानते हैं कल्पारंभ पूजा का मुहूर्त, विधि और महत्व.


कल्पारंभ पूजा 2023 मुहूर्त (Kalparambha Puja 2023 muhurat)


पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत 19 अक्टूबर 2023 को प्रात: 12 बजकर 31 मिनट पर होगी और समापन 20 अक्टूबर 2023 को रात 11 बजकर 24 मिनट पर होगा. इसी दिन, देवी दुर्गा को बिल्व वृक्ष या कलश में निवास करने के लिए आमंत्रित किया जाता है.



  • कल्पांरभ पूजा मुहूर्त - सुबह 06.25 - सुबह 09.15

  • बिल्व निमंत्रण मुहूर्त -  दोपहर 03:30 - शाम 05:47


कल्पांरभ क्या है ? (Kalparambha Puja Meaning)


दुर्गा पूजा के दौरान कल्पारम्भ अनुष्ठान और नवरात्रि के दौरान प्रतिपदा तिथि पर किये जाने वाला घटस्थापना प्रतीकात्मक रूप से एक जैसे होते हैं. देवी दुर्गा के आव्हान के लिए इस अनुष्ठान को आमंत्रण के रूप में जाना जाता है. देवी दुर्गा का आवाहन करने का सबसे अच्छा समय प्रात: काल है.


कल्पांरभ पूजा विधि (Kalparambha Puja Vidhi)


काल प्रारंभ की क्रिया प्रात: काल की जाती है। इस दौरान घट या कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है. घट स्थापना के बाद ही महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी, इन तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना की जाती है. आखिरी दिन विजयादशमी पर सिंदूर खेला होता है फिर मां को विदाई दी जाती है.


बिल्व निमंत्रण महत्व (Bilva Nimantran Significance)


सांयकाल और षष्ठी का संयोग बिल्व पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय है. ये दुर्गा पूजा की अहम परंपरा है. घट के साथ-साथ इस दिन देवी दुर्गा को बिल्व वृक्ष पर आमंत्रित किया जाता है.


अकाल बोधन परंपरा निभाई जाती है (Akal Bodhon Ritual)


दुर्गा पूजा के पहले दिन अकाल बोधन की परंपरा निभाई जाती है. ये क्रिया शाम को संपन्न की जाती है. बोधन से अर्थात नींद से जगाना.शारदीय नवरात्रि दक्षिणायन काल में आती है जब समस्त देवी-देवता निद्रा में होते हैं. देवी-देवता कार्तिक माह में उठते हैं ऐसे में देवी मां को असमय निंद्रा से जगाने की प्रक्रिया को अकाल बोधन कहा जाता है, ताकि मां को जाग्रत कर उनकी विधि विधान से पूजा की जा सके.


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