Durga Puja 2022: नवरात्रि का त्योहार पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की रौनक कुछ अलग ही होती है. नवरात्रि पर्व खासकर बंगाली समुदाय के लिए बहुत विशेष महत्व रखता है.


नवरात्रि, नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का पर्व है लेकिन बंगाली लोग सिर्फ पांच दिन दुर्गा पूजा करते हैं. आइए जानते हैं कब से शुरू होगी दुर्गा पूजा और क्या है इसका महत्व.


दुर्गा पूजा 2022 कब है ? (Durga Puja 2022 Dtae)


पितृ पक्ष के खत्म होते ही महालया से नवरत्रि की शरुआत हो जाती है. भक्त नौ दिन मां के निमित्त व्रत, साधना करते हैं. वहीं बंगालियों की दुर्गा पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि से आरंभ होती हैं और इसका समापन विजयादशमी यानी कि दशहरा पर होता है. इस साल दुर्गा पूजा 1 अक्टूबर 2022 - 5 अक्टूबर 2022 तक चलेगी. पांच दिन का यह त्योहार बंगालियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. प्रतिपदा तिथि से पंचमी तक बंगाली दुर्गा पूजा की तैयारियां करते हैं, मां के मूर्ति को सजाया जाता है फिर छठवें दिन से शक्ति की उपासना होती हैं.


दुर्गा पूजा की परंपरा (Durga Puja Tradition)



  • महालया - महालया यानी कि प्रतिपदा तिथि पर के दिन मां पार्वती अपने शक्तियों और नौ रूपों के साथ अपने पृथ्वी लोक पर अपने मायके आती है. इनके साथ पुत्र गणेश व कार्तिकेय भी पधारते हैं. बंगाल में महालया के दिन कन्या के रूप में माता को आमंत्रित किया जाता है भोजन कराते हैं.

  • चाला - बंगालियों में मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरूप को पूजा जाता है. पंडालों में देवी की इस प्रतिमा के साथ मां सरस्वती, मां लक्ष्मी, पुत्र गणेश और कार्तिकेय की मूर्ति भी होती हैं. इस प्रस्तुति को चाला कहा जाता है.

  • पारा और बारिर - दुर्गा पूजा दो तरह से होती है. एक पारा जहां पंडालों और सामुदायिक केंद्रों में पूजा का आयोजन किया जाता है. वहीं बारिर का अर्थ है घर में मां दुर्गा की पूजा. इस पूजा के लिए परिवार के सभी लोग इक्ट्‌ठा होते हैं. ये घर-परिवार के लोगों को जोड़कर रखने की भावना से किया जाता है.

  • पुष्पांजलि - अष्टमी के दिन हर बंगली सुबह मां दुर्गा पर फूल अर्पित कर पुष्पांजलि की रस्म निभाता है.

  • धुनुची नृत्य - दशमी के दिन बंगाली लोग शक्ति नृत्य करते हैं जिसे धुनुची नृत्य कहा जाता है. ये डांस दुर्गा पूजा महोत्सव का अहम हिस्सा है. मान्यता है कि धुनुची नाच से मां भवानी बेहद प्रसन्न होती हैं.

  • सिंदूर खेला - दुर्गा पूजा के आखिरी दिन विजयादशमी पर विवाहित महिलाएं सिंदूर खेला की रस्म निभाती हैं. ये दुर्गा पूजा की प्राचीन परंपरा है इसमें मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर अर्पित किया जाता है अपने पति की दीर्धायु की कामना की जाती है. फिर महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर उत्साह के साथ मां को विदा करती हैं.


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