क्या दशहरा या विजय दशमी के दिन रावण मरा था? शास्त्रों के अनुसार जानें इस दिन की मान्यताएं और तथ्य
दशहरा का पर्व अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है. इस दिन रावण दहन किया जाता है. लेकिन क्या दशहरा के दिन रावण मरा था. धार्मिक ग्रंथों के जानकार अंशुल पांडे से जानते और समझते हैं इस बारे में.
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दशहरा के दिन रावण मारा गया था ऐसा वाल्मीकि रामायण, पुराण या किसी अन्य अधिकृत ग्रंथ में वर्णन नहीं हैं. यह पुरानी मान्यताओं के आधार पर लोग मानते चले आ रहे हैं. हालांकि पुरानी मान्यताएं मानना कोई बुरी बात नहीं है क्योंकि मनुस्मृति में मेधातिथि भाष्य 2.6 भी कहती है कि, पुरानी मान्यताओं को माना जाए अगर वे अच्छी है तो. यह सब ठीक है पर साथ ही साथ सत्य और शास्त्रीय स्वरूप भी जानना आवश्यक है. तो चलिए जानते है इसका शास्त्रीय स्वरूप.
ब्रह्म पुराण 60.15 अनुसार दस पापों को नष्ट होना दशहरा का अर्थ माना जाता हैं. स्कंद पुराण उत्तररार्द्ध 6.52.92 के अनुसर दशहरा को दस जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. लोकाचार अनुरूप नवरात्रि के दसवें दिन देशभर में विजय दशमी को हर्षोल्लास से मनाया जाता है. दशहरा अथवा विजय दशमी अर्थात नवरात्रि के बाद का दसवां दिन. देवी पुराण 3.27.49 अनुसार दशमी के दिन प्रभु राम ने देवी जी का नवरात्र व्रत पूर्ण कर के किष्किंधा से लंका की ओर प्रस्थान किया था इसलिए इसे विजय दशमी बोलते है. भगवान राम ने देवी से विजय का आशीर्वाद मांगा था इसलिए विजय दशमी के दिन लोग शस्त्र पूजा करते हैं.
भविष्य पुराण उत्तर पर्व अध्याय 138 अनुसार जिस व्यक्ति को विजय की आस है वह विजय दशमी को अपने शास्त्र की पूजा करे. आज के युग में शास्त्र और शस्त्र दोनों का सामंजस्य जरूरी है. सिर्फ शस्त्र को आधार बनाएंगे तो आदमी पशु हिंसक हो जाता है और सिर्फ शास्त्र को आधार बनाएंगे तो आदमी कमजोर प्रतीत होता है (संत और ऋषि मुनियों के अलावा). भगवान राम ने दोनों का सामंजस्य रखा था, उन्होंने शास्त्र के अनुसार नवरात्र का व्रत पालन किया और शस्त्र से शत्रुओं का विनाश किया. हम सभी को राम जी को अपना प्रेरणा स्त्रोत्र बनाना चाहिए. आप खुद सोचिए
आपका पुत्र कैसा हो?
उत्तर: – राम जैसा हो।
पति कैसा हो?
उत्तर: – राम जैसा हो।
भाई कैसा हो?
उत्तर: – राम जैसा हो।
राजा कैसा हो?
उत्तर: – राम जैसा हो।
और तो और शत्रु कैसा हो?
उत्तर: – वो भी राम जैसा ही हो।
’दशहरा’ रावण पर राम की विजय बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है. चूंकि सदियों से ऐसे ही यह त्योहार मनाया जा रहा है तो हम भी उन्ही चीजों को मानते चले जा रहे हैं. कुछ खंगालने पर लगभग सौ वर्ष पुरानी ’व्रतुत्सव चंद्रिका' के कुछ अंशो पर ध्यान गया जहां पर दशहरे की शास्त्रीय मान्यताएं और लौकिक मान्यताओं पर लिखे एक लेख पर दृष्टि पड़ी. उसमे जो शास्त्रीय मान्यताएं लिखी थी उसका थोड़ा सा वर्णन करना आवश्यक है. उसके अनुसार विजयादशमी पर भविष्योंत्तर पुराण में लिखा है. चिंतामणि ग्रंथ में भी लिखा है.
अश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो नाम सर्वकामर्थसाधक।
अर्थात अश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी में विजय नामक काल होता है जब शत्रुओं पर आक्रमण करने हेतु प्रस्थान करना चाहिए. सारी इच्छाएं इस काल में काम के श्रीगणेश करने पर पूरी हो जाती है. प्रभु राम ने इस समय रावण पर आक्रमण करने के लिए किष्किन्धा से प्रस्थान किया था. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए मध्य युगीन राजा प्रतीकात्मक रूप से समस्त रसद लेकर अपनी सीमा को थोड़ा पार करके लौटते हुए जश्न मनाते थे. यहां पर शमी के वृक्ष का पूजन अवश्य किया जाता था.
शमी शमवते पापम शमी शत्रु विनाशयनी।
अर्थात शमी पापों का शमन करनेवाला और शत्रुओं का नाश करनेवाला है. प्राचीन काल से इस पेड़ का महत्व रहा है. महाभारत विराट पर्व (अध्याय 41–42) अनुसार, अज्ञातवास में जाने से पूर्व पांडव अपने शस्त्र वन में शमी के पेड़ पर ही बांध कर गए थे. जब विराट राज्य पर संकट आया तब अर्जुन त्वरित उत्तर कुमार को लेकर उसी शमी वृक्ष पर से अपने शस्त्र ले आए थे. उसके बाद अर्जुन ने सारे कुरु योद्धाओं (भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण, आश्वथामा, दुर्योधन, आदि) को अकेले ही पराजित किया वो भी बिना सेना के. इसके अतिरिक्त भविष्योपाख्यान पुराण में कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि:–
अलंकृते भूपितभृत्योंवर्ग: परिष्कृतोतुंगतुरंग नाग:।
वादितनाद प्रतिनादितकाश: सुमंगलाचारपरमपराशि:।।
अर्थात कृष्ण युधिष्ठिर को समझाते हैं कि राजा को स्वयं और प्रजा को सजा धजाकर पूर्व दिशा में सीमा को पार करके अष्ट दिक्पाल की पूजा अर्चना गायन वादन के साथ करना चाहिए. फिर शमी वृक्ष का पूजन करने के उपरांत एक मिट्टी की मूर्ति या पुतला बनाकर उसके हृदय पर बाण चलाएं. फिर उत्सव के उपरांत घर लौट आएं. इससे राजा को उत्तम फल प्राप्त होता है. यह पर्व तो क्षत्रियों के लिए अनिवार्य है ऐसा समझना गलत नहीं हैं.
लौकिक स्वरूप से बाद के राजाओं के यहां जुलूस निकालकर सीमांत तक जाकर रावण के लम्बे बड़े से पुतले को खड़ा किया जाता और उसपर धनुषबाण से प्रहार किया जाता. पहले ही कहा गया है कि यह पर्व मूल रूप से भगवान राम से जुड़ा है. राजधानी लौटकर पुनः अगले दिन भी उत्सव जुलूस निकाला जाता. दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है. उत्तर भारत में विशेषतः पंजाब और वाराणसी में रामलीला का प्रचलन शुरू हुआ. रामलीला का समापन दशहरे के दिन विजयादशमी के रूप मे मनाया जाने लगा. अब तो लगभग भारत के एक बहुत बड़े हिस्से में रावण दहन किया जाता है. महाराष्ट्र में लोग सोना पत्ता (अप्ता के पत्ते) सभी घरों में बांटते है ताकि समृद्धि आए. यह लेख का उद्देश्य लोगों को सत्यता से अवगत कराना था ताकि लोग लौकिक स्वरूप के अलावा शास्त्रीय स्वरूप भी जाने.
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