“कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
हम को अगर मयस्सर जानां की दीद होती”


ईद को लेकर उर्दू के शायर  ग़ुलाम भीक नैरंग की इन लाइनों में ईद का भी जिक्र है और महबूब का भी. दरअसल, ईद का चांद और हुस्न, उर्दू शायरी का महबूब विषय रहा है. शायरों ने अपने तख़य्युल (सोच की उड़ान) से अनेक ऐसे अश'आर (एक से ज्यादा शेर) दिए हैं, जिससे जहां ख्याल का आकर्षण तो दिखता ही है, साथ ही उसमें  महबूब की खूबसूरती को बयान करने के लिए एक अनोखा रूपक वजूद में आता है. इसके पढ़ने से ऐसा अहसास होता कि शायर  का तख़य्युल कैसे हर चीज़ में लुत्फ पैदा कर देता है. क्योंकि ईद सोमवार या मंगलवार को हो सकती है. ऐसे में बात आज कुछ ऐसी ही शायरी पर जिन्हें आप भी लिखकर या बोलकर चार चांद लगा सकते हैं.


ताकि न बदले तारीख


एक बात जेहन में रहे कि अरब देशों में ईद की घोषणा कर दी गई है. अब भारत में ईद कब होगी इसे लेकर चर्चा काफी तेज है और आज शाम को ईद का चांद देखने का खास एहतिमाम( आयोजन) होगा. ऐसे में शायरों की एक सलाह हुस्न की परियों को जरूर देना चाहिए. वरना क्या पता शहर में ईद की तारीख़ बदल जाए.


माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़


शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी


-जलील निज़ामी


 


ईद का चाँद तुम ने देख लिया


चाँद की ईद हो गई होगी


-इदरीस आजाद


 


देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल


वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है


-अज्ञात


 


ईद के बा'द वो मिलने के लिए आए हैं


ईद का चाँद नज़र आने लगा ईद के बा'द


-अज्ञात


 


हटा कर जुल्फें चेहरे से न छत पर शाम को जाना


कहीं कोई ईद न कर ले अभी रमजान बाकी है


-अज्ञात


 


ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद का


ईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का


-अज्ञात


 


हम ने तुझे देखा नहीं क्या ईद मनाएँ


जिस ने तुझे देखा हो उसे ईद मुबारक


-लियाक़त अली आसिम


 


जिस तरफ़ तू है उधर होंगी सभी की नज़रें


ईद के चाँद का दीदार बहाना ही सही


-अमजद इस्लाम अमजद


 


कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती


हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती


-ग़ुलाम भीक नैरंग


 


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