"वहां ईद क्या वहां दीद क्या


जहां चांद रात न आई हो"


शारिक़ कैफ़ी की इस शायरी में वह ईद के चांद के इंतजार के साथ ही महबूबा के आने का इंतजार, और उसके न दिखने पर ईद न हो पाने की मायूसी को बयां करते हैं. काफी हद तक यह मायूसी हर साल रमजान के पाक महीने के समापन पर ईद के लिए दिखती है. लोग चांद के इंतजार में रहते हैं ताकि ईद की घोषणा हो सके. इस इंतजार में हर साल अलग-अलग देशों में ईद की तारीख भी अलग हो जाती है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब ईद एक है, चांद भी एक है तो फिर दुनिया में तीन-तीन दिन ईद क्यों, यह चांद की लुकाछिपी है या फिर मुस्लिम धर्म के कुछ मौलवियों की कारस्तानी है. आइए जानते हैं इन सब सवालों के जवाब.


पहले अंतर समझ लीजिए


सऊदी अरब में ईद सोमवार को यानी 2 मई को मनाई जा रही है. भारत में चांद तो नहीं दिखा, लेकिन अधिकतर राज्यों में 3 मई को ईद की घोषणा की गई है, वहीं केरल 2 मई को ही ईद मना रहा है. इन सबसे अलग अफगानिस्तान में रविवार को ही ईद मनाई जा चुकी है.


ये है बांग्लादेश का फॉर्म्युला, इसे अपनाते हैं कई देश


कुछ मौलवी कहते हैं कि चांद को लेकर ज्यादा मतभेद नहीं रखना चाहिए. वह कहते हैं कि बांग्लादेश इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. वहां इस्लामिक फाउंडेशन की मून साइटिंग कमिटी तय करती है कि ईद कब है. ये कमिटी रमजान के 29वें दिन दोपहर में एक मीटिंग करती है और ईद के दिन का निर्धारण करती है. निर्धारण का फॉर्म्युला बहुत सीधा रहता है. अगर रमजान के 29वें दिन कहीं भी चांद दिख जाए तो उसके अगले दिन को ईद के रूप में मनाया जाता है. इसी वजह से अक्सर बांग्लादेश में सऊदी अरब के एक दिन बाद ही ईद मनाई जाती है. दुनिया के कुछ और मुस्लिम देश इसी फॉर्म्युले को फॉलो करते हैं.


एक ही दिन ईद के कई हिमायती


वहीं कुछ मौलवी पूरी दुनिया में एक ही चांद और एक ही दिन पर ईद की बात कहते हैं. ऐसा करने वाले कुछ मौलवी कहते हैं कि अपने देश में चांद देखने की कोई बाध्यता नहीं है. इसके पीछे उनका तर्क है कि इमाम अबू हनीफा और पैगंबर ने यही कहा है कि एक ही दिन रोजा रखना चाहिए और एक ही दिन सबको तोड़ना चाहिए. क्योंकि जब चांद उगता है तो चंद्र मास शुरू हो जाता है. इसके अलावा एक और तर्क कुछ मौलवी देते हैं. वह कहते हैं कि जब मक्का मुसलमानों का सबसे पवित्र स्थल है और वहां चांद दिख गया है तो फिर दूसरी जगह चांद का इंतजार क्यों, हमें उसी आधार पर ईद मनानी चाहिए. कुछ मौलवी सवाल करते हैं कि हिजरी वर्ष का चंद्र मास नग्न आंखों से चांद के दिखते ही शुरू हो जाता है. इस पर सब सहमत भी हैं, फिर भी ईद के चांद को लेकर अलग-अलग मत समझ से परे है.


अलग-अलग चांद दिखने की ये भी वजह


यहां ये भी समझने की जरूरत है कि चांद एक ही है और वह एक ही चक्र से पूरी दुनिया में चलता है. ऐसे में अलग-अलग देशों में उसके एक साथ न दिखने की वजह सिर्फ भौगोलिक है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है. दरअसल, पृथ्वी जब सूर्य का चक्कर लगाती है तो एक चक्कर पूरा होने में 365 दिन और कुछ घंटे लगते हैं. ऐसे में 365 दिनों वाला साल हर चौथे वर्ष लीप ईयर कहलाता है. तब फरवरी में एक दिन बढ़ जाता है. लीप ईयर 366 दिनों का होता है. ठीक इसी तरह चांद भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है. विज्ञान के मुताबिक अगर पृथ्वी अपनी जगह ठहरी रहे और चांद परिक्रमा करता रहे तो 27 दिन में चांद पृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेता है, लेकिन चांद के साथ-साथ पृथ्वी भी घूमती है. जिसकी वजह से पृथ्वी और चांद का एक चक्कर 29 दिन और कुछ घंटों में पूरा होता है. एक चक्कर कंप्लीट होने के बाद जो चांद नजर आता है उसी को नया चांद कहते हैं. ऐसे में यहां भी मतभेद की जरूरत महसूस नहीं होती है.


कैलेंडर के हिसाब से भी मतभेद की जरूरत नहीं


अब अगर कैलेंडर के हिसाब से भी देखें तो ईद को लेकर अलग-अलग दिन और मतभेद की जरूरत महसूस नहीं होती. ईद उर्दू कैलेंडर हिजरी के हिसाब से मनाई जाती है. इस कैलेंडर का 9वां महीना रमज़ान का होता है जो अमूमन 29 या 30 दिनों का होता है. इसके बाद 10वां महीना शव्वाल शुरू होता है, जिसकी पहली तारीख को ही ईद मनाई जाती है. कुछ मौलवी कहते हैं जब कैलेंडर एक है तो फिर ईद और चांद अलग-अलग दिन क्यों.


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