Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है. हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं. एक कृष्ण पक्ष के दौरान और दूसरे शुक्ल पक्ष के दौरान.एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन व्रतों में से एक है. मान्यता है कि हर एकादशी के व्रत का अपना अलग महत्व होता है. लेकिन सभी एकादशी के व्रत के लिए नियम एक ही होते हैं. बता दें कि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए रखा जाता है. 


मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इतना ही नहीं, इस दिन व्रत और दान आदि करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. बता दें कि एकादशी का व्रत दशमी तिथि से शुरू होकर द्वादशी के दिन समाप्त किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि अगर एकादशी के व्रत का पालन नियमों के अनुसार न किया जाए, तो इससे व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता. इस दिन चावल खाना वर्जित होता है. आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा, और चावल क्यों मना होता है.


एकादशी के दिन इसलिए नहीं खाते चावल ?


पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल काने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद अगला जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में मिलता है. वहीं, ऐसा कहा जाता है कि अगर द्वादशी के दिन चावल खाए जाएं तो इस योनि से मुक्ति मिल जाती है. पुराणों के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचाव के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग किया और अंश पृथ्वी में समा गया. महर्षि मेधा चावल और जौ के रूप में उत्पन हुए इसलिए तब से चावल और जौ को जीव माना जाने लगा.


बता दें कि एकादशी के दिन ही महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया था. अतः चावल और जौ को जीव रूप मानते हुए एकादशी के दिन इन्हें खाना वर्जित हो गया. एकादशी के दिन इसे न खाकर एकादशी का व्रत पूर्ण माना जाता है. 


चावल को लेकर ज्योतिषीय मान्यता 


वहीं, ज्योतिषियों का कहना है कि चावल में जल तत्व की मात्रा ज्यादा होती है. जल पर चंद्रमा का प्रभाव ज्यादा पड़ता है. इसे खाने से शरीर में जल की मात्रा भी बढ़ जाती है और इससे मन चंचल हो जाता है. ऐसे में व्रत के नियो का पालन करने में बादा उत्पन्न होती है. वहीं, पुराणों में जिक्र है कि एकादशी के व्रत में मन को पवित्र और सात्विक भाव का पालन जरूरी है. इसलिए इस दिन भूलकर भी चावल या चावल से बनी चीजें न खाएं. 


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