Putrada Ekadashi 2020 Importance Date Time: पुत्रदा एकादशी का व्रत एक विशेष व्रत माना गया है. महाभारत काल में एकादशी व्रत के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने विस्तार से युधिष्टिर और अर्जुन को बताया था. एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. मान्यता है कि एकादशी व्रत में विधि पूर्वक पूजा करने से सभी प्रकार के पाप मिट जाते हैं और सुख समृद्धि प्राप्त होती है.
30 जुलाई को पुत्रदा एकादशी है. योग्य संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखा जाता है. वहीं संतान ज्ञानवान और आज्ञाकारी हो इसके लिए भी माताएं इस व्रत को रखती है. पुत्र के कल्याण से जुड़े होने के कारण ही इस व्रत को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है.
पुत्रदा एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सुकेतुमान नाम का राजा भद्रावती राज्य पर राज करता था. उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. सबकुछ होने के बाद भी उनके पास कोई संतान नहीं थी जिस कारण दोनों उदास और चिंतित रहते थे. राजा के मन में पित्ररों और पिंडदान की चिंता सताने लगी. इसी दुख के कारण एक बार राजा के मन में आत्महत्या करने का विचार आया लेकिन पाप समझकर उसने यह विचार त्याग दिया. एक दिन राजा का मन राज्य के कामकाज में नहीं लग रहा था तो वह जंगल की तरफ चल दिया.
जंगल में उसे बहुत पशु पक्षी और जानवर दिखाई दिए. राजा के मन में बुरे बुरे विचार आने लगे. जब वह बेहद दुखी हो गए तो एक तालाब के किनारे आकर बैठ गया. इस तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे. राजा एक आश्रम में गया और वहां पर ऋषि मुनियों को प्रणाम कर बैठ गया. राजा को देखकर ऋषि मुनियों ने कहा कि राजा को यहां देखकर वे प्रसन्न हैं अत: अपनी इच्छा बताओ. तब राजा ने अपनी चिंता ऋषि को बताई. ऋषि ने राजा की बात को सुनकर कहा कि आज पुत्रदा एकादशी इसलिए वे यहां स्नान करने आए हैं.
ऋषि मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखने को कहा. राजा ने उसी दिन से एकादशी का व्रत आरंभ कर दिया. राजा ने विधि पूर्वक व्रत रखा और द्वादशी को व्रत का पारण किया. कुछ दिनों बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह पश्चात राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. यह बालक साहसी और जनता का कल्याण करने वाला हुआ.
Putrada Ekadashi 2020: जानें कब है पुत्रदा एकादशी, क्यों रखा जाता है व्रत और क्या है इसका महत्व