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Mahabharat : गुरु द्रोण से बदला लेने को द्रोपदी के भाई बनकर जन्मे थे एकलव्य
महाभारत काल की कथाओं में गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य का प्रसंग गुरु दक्षिणा के संबंध में मशहूर है, लेकिन इसी शिष्य ने गुरु से इस धोखे का बदला लेने के लिए दोबारा जन्म लिया.
![Mahabharat : गुरु द्रोण से बदला लेने को द्रोपदी के भाई बनकर जन्मे थे एकलव्य Eklavya was born as Draupadi's brother to take revenge on Drona Mahabharat : गुरु द्रोण से बदला लेने को द्रोपदी के भाई बनकर जन्मे थे एकलव्य](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/06/26/0f098d5dc8f4f1f138c1d4b1def129d9_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Mahabharat : महाभारत काल की कथाओं में गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य का प्रसंग गुरु दक्षिणा के संबंध में मशहूर है, लेकिन इसी शिष्य ने गुरु से इस धोखे का बदला लेने के लिए दोबारा जन्म लिया. इसके लिए उन्हें श्रीकृष्ण के हाथों मरना पड़ा और उनके वरदान से ही वह द्रौपद के बेटे धृष्टाधुम्न के तौर महाभारत युद्ध में द्रोण के काल बने.
पौराणिक कथाओं के अनुसार एकलव्य पूर्व जन्म में भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे. वह श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के भाई देवश्रवा के पुत्र थे. एक दिन देवश्रवा जंगल में खो जाते हैं, जिन्हें हिरान्यधाणु खोजते हैं, इसलिए एकलव्य को हिरान्यधाणु का पुत्र भी कहा जाता है.
किशोरावस्था में एकलव्य धनुर्विद्या सीखने गुरु द्रोण के पास जाते हैं, लेकिन उनकी जाति जानकर द्रोण उन्हें तिरस्कृत करते हुए आश्रम से निकाल देते हैं. तब एकलव्य द्रोण की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या सीखते हैं. मगर जब द्रोण को पता चलता है कि एकलव्य उनके प्रिय शिष्य अर्जुन को भी धनुर्विद्या में हरा सकता है तो वह गुरु दक्षिणा में दाएं हाथ का अंगूठा मांग लेते हैं ताकि एक लव्य कभी धनुष ना चला सकें.
मगर कर्तव्य परायण एकलव्य अच्छे शिष्य होने के नाते अंगूठा उन्हें समर्पित कर देते हैं. पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि एकलव्य की मृत्यु कृष्ण के हाथों रुकमणि स्वयंवर के दौरान हुई थी. इस दौरान वह पिता की रक्षा करते हुए मारे गए थे. लेकिन तब कृष्ण ने उन्हें द्रोण से बदला लेने के लिए फिर जन्म लेने का वरदान दिया था. इस बार एकलव्य धृष्टधुम्न के रूप में द्रुपद नरेश के घर जन्मे. द्रौपदी का भाई होने के नाते उन्हें द्रौपदा भी कहा गया.
महाभारत युद्ध में धृष्टद्युम्न पांडवों की ओर से लड़े. अर्जुन के हाथों घायल होकर भीष्म के शरशैय्या पर आने के बाद द्रोण कौरव सेनापति बने. इस दौरान अश्वत्थामा की मौत की बात युधिष्ठिर से सुनकर वह द्रवित हो गए और धनुष बाण रख दिया. इसी समय पूर्व काल के एकलव्य यानी धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका शीश काट दिया, इस तरह एकलव्य ने एक ही काल में दोबारा जन्म लेकर गुरु के धोखे का बदला ले लिया.
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