भारतीय संस्कृति में तीर्थ और पर्व दोनों का महत्व होता है. तीर्थ पवित्र नदियों के किनारे स्थित होते हैं. उन स्थानों पर पर्व मनाने की अपनी महत्ता है लेकिन उन्हीं पर्वों को देश की पवित्र नदियों का आव्हान कर पूरे भारत वर्ष में कहीं भी मनाए जाने का महात्म है. यही कारण है कि देश में सभी स्थानों पर हर बहते हुए पानी में पवित्र नदियों की उपस्थिति मान कर पर्व स्नान किया जाता है और धर्मलाभ लिया जाता है.


लोक आस्था का ऐसा ही एक पर्व है मांघी पूर्णिमा इस दिन सूर्योदय से पूर्व श्रद्धालु पास की किसी भी प्रवाहित नदी में माघ पूर्णिमा की पवित्र डुबकी लगाते हैं और दान-यज्ञ करते हैं.

स्नान  मंत्र -
ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु ||

श्लोकार्थ- गंगा,यमुना,गोदावरी,सरस्वती,नर्मदा,सिंधु और कावेरी आप सभी पवित्र नदियों का जल मेंरे जल में उपस्थित होइए मैं आपका आव्हान करता हूं. आपके पवित्र जल से स्नान कर मैं अपने सभी पापो का विनाश कर सकूं.


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान करने वाले मनुष्यों पर भगवान माधव प्रसन्न रहते हैं और उन्हें सुख-सौभाग्य, धन-संतान और मोक्ष प्रदान करते हैं.


शास्त्रों कि इसी मान्यता के अनुसार माघी पूर्णिमा पर पूरे भारत में अनेकों तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रातः स्नान, सूर्य अर्घ्य, जप-तप व दान आदि करने से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है. इसी दिन से नदियों की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है. इसी माघी पूर्णिमा के दिन से देश में मेलों के आयोजन प्रारंभ हो जाते हैं.