हर माह कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या मनाई जाती है. फाल्गुन मास (Falgun Month Amavasya 2022) में अमावस्या 2 मार्च के दिन पड़ रही है. हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है. अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान, दान आदि की परंपरा है. इतना ही नहीं, अमावस्या का दिन पितरों को समर्पित होता है. इस दिन पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण आदि किया जाता है. अमावस्या के दिन पितरों को तृप्त करने के लिए पूजा आदि की जाती है. ताकि पितृ तृप्त होकर वंशजों को आशीर्वाद दे सकें और पितृ दोष से मुक्त कर सकें. इस साल अमावस्या के दिन दो शुभ योग शिव और सिद्ध बन रहे हैं. आइए जानें इन योग के बारे में.  


फाल्गुन अमावस्या 2022 तिथि (Falgun Amavasya 2022 Tithi)


हिंदू पंचाग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 1 मार्च देर रात 01:00 बजे से शुरू हो रही है, और 02 मार्च को रात 11:04 बजे तक रहेगी. इसलिए फाल्गुन अमावस्या 2 मार्च के दिन मनाई जाएगी. इस दिन खास शिव योग और सिद्ध योग बन रहा है. अमावस्या के दिन प्रात: 08:21 बजे तक शिव योग है. उसके बाद से सिद्ध योग आरंभ हो जाएगा, जो कि अगले दिन 03 मार्च प्रात: 05:43 बजे समाप्त होगा.


किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए ये दोनों योग अच्छे माने जाते हैं. अगर कोई शुभ कार्य करना चाहते हैं तो अमावस्या के दिन कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं. 


फाल्गुन अमावस्या का पंचांग (Falgun Amavasya Panchang)


सूर्योदय: प्रात: 06:45 बजे
सूर्यास्त: शाम 06:21
चन्द्रोदय: नहीं
चन्द्रास्त: शाम 06:02 बजे
नक्षत्र: शतभिषा 03 मार्च को तड़के 02:37 बजे तक
योग: शिव, सुबह 08:21 बजे तक, फिर सिद्ध योग, 03 मार्च को सुबह 05:43 बजे तक
अभिजित मुहूर्त: कोई नहीं
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:29 बजे से दोपहर 03:16 बजे तक
अमृत काल: शाम 07:47 बजे से रात 09:18 बजे तक
राहुकाल: दोपहर 12:33 बजे से दोपहर 02:00 बजे तक


फाल्गुन अमावस्या का महत्व (Falgun Amavasya Significance )


फाल्गुन अमावस्या पर देशभर में कई जगहों पर फाल्गुन मेला लगता है. हिंदू धर्म में फाल्गुन अमावस्या का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में देवी-देवता प्रकट होते हैं. इसलिए इस दिन नदियों में स्नान का विशेष महत्व है. इस दिन स्नान करके दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं, पितरों की शांति के लिए दान, तर्पण और श्राद्ध आदि किया जाता है. ऐसा करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं.


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