कुंडली में धन भाव और परिजनों का एक ही भाव होता है. धनभाव से आशय संग्रहित धन से होता है. परिवार के लोगों का संचित धन ही हमारी पैतृक पूंजी कहलाता है. अर्थात् संग्रह संरक्षण और संपत्ति का सीधा संबंध कुलकुटुम्बियों रक्तसंबंधियों से होता है. 


परिजनों से बनाकर चलने वाला धन संपदा में भाग्यशाली होता है. धन की देवी महालक्ष्मी उन पर कृपा बरसाती हैं. उनका रहन सहन समाज में सराहनीय होता है. संस्कारों की प्रबलता बनी रहती है. नगदी का अभाव नहीं होता है. मेहमानों का आना जाना लगा रहता है. घर में धनधान्य की प्रचुरता रहती है.


धन भाव के प्रभाव से ही संयुक्त परिवार में रहने वाले सुखी और सफल होते हैं. संयुक्त व्यापार व्यवसाय में सफलता पाते हैं. घर में सुख सौख्य शांति रहती है. समस्त लोकाचार को बखूबी निभाते हैं.



प्रिजनों से कलह करने वाले व्यक्तिगत रूप से सफल रहकर भी संघर्षशील बने रहते हैं. परिजनों के अभाव में खुशियों को साझा करने वालों का अभाव रहता है. महालक्ष्मी कृपा से भी ऐसे लोग वंचित रह जाते हैं. 


महालक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहे, भंडार भरा रहे, इसके लिए जरूरी है कि सभी परिजन एक दूसरे को आदर सम्मान और प्रेम दें. स्नेह का आदान प्रदान माता वैष्णवी की कृपा बनाए रखता है. महालक्ष्मी उनपर खूब मेहरबान रहती हैं.


परिवार में सुख शांति और सद्भाव के लिए भगवान विष्णु और विष्णुप्रिया की पूजा नियमित करें. इससे संस्कार और संमृद्धि आती है. रहन सहन संवरता है.