Mahima Shanidev ki : पुत्रों को आपस में झगड़ते देखकर मां छाया ने सूर्यदेव से गुहार लगाकर शनिदेव को सूर्य की किरणों से जलने के श्राप से मुक्त तो करवा लिया, लेकिन उन्हें अपनाने या सूर्यमहल में जगह देने से मना कर दिया गया.


यह वह समय था, जब खुद इंद्र देवताओं और गुरु शुक्राचार्य कर्मफलदाता (Karmafal data) के शक्तिपुंज को खोजने के दौरान जंगल में संग्राम छेड़ चुके थे. संघर्ष के दौरान उन्हें पता चला कि शनिदेव के रूप में जिसे वे शक्तिपुंज मानकर पाने की होड़ में थे, वो कोई तटस्थ शक्ति नहीं बल्कि खुद सूर्यदेव के पुत्र हैं तो दोनों युद्ध रोक कर सोच में पड़ गए. दानव खुद को ठगा महसूस कर चले, लेकिन इंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वे शनिदेव के सूर्य पुत्र होने की बात सुनकर गदगद हो गए. मगर सूर्यदेव के शनिदेव को नहीं अपनाने की बात पर वह रुष्ट हो गए. उन्होंने खुद के देवराज होने की बात कहते हुए सूर्यदेव को आदेश दिया कि वह छाया से क्षमा मांगे, सूर्यदेव इसके लिए राजी हो जाते हैं तो सूर्यदेव शनिदेव को सूर्यमहल ले जाने का निर्देश देते हैं. देवराज होने के चलते सूर्यदेव उन्हें टाल नहीं पाते और शनिदेव को सूर्यमहल में पूरे परिवार के साथ रहने की इजाजत दे देते हैं.


इधर, शनिदेव अपनी असलियत जानकर चकित रह जाते हैं, लेकिन मां के कहने पर वह सूर्यमहल चलने के लिए तैयार हो जाते हैं. वहां पहुंचकर शनिदेव का भव्य सत्कार होता है, लेकिन जब वह पिता का आशीर्वाद लेने जाते हैं सूर्यदेव बचपन में शनि के जरिए खुद पर लगे ग्रहण की पीड़ा याद कर उन्हें तिरस्कृत कर देते हैं. वह उन्हें चेतावनी देते हैं कि मां छाया के कहने पर उन्हें सूर्यमहल में जगह तो मिल गई, लेकिन पिता को ग्रहण लगाने वाले पुत्र को कभी स्वीकार नहीं कर सकते, ऐसे में शनिदेव पिता के घर में आकर भी पिता का साथ नहीं पा सके.


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