दुनिया में कई सारे कैलेंडर का चलन है, इसमें एक कैलेंडर सन हिजरी कहलाता है, इसे इस्लामी कैलेंडर के नाम भी जाना जाता है. ये कैलेंडर पैगंबर मोहम्मद के मक्का से मदीना के विस्थापन के दिन से शुरू होता है. इसकी शुरुआत 622 ईसवी में हुई थी. ये कैलेंडर चांद की गति के हिसाब से चलता है इसलिए मौजूदा कैलेंडर की तुलना में साल में 10 दिन कम होते हैं. यानि हिजरी साल 355 दिनों का होता है.


गुरुवार या शुक्रवार से इस्लामिक कैलेंडर के नए साल की शुरुआत होने वाली है. 20 अगस्त, 220 को हिजरी सन के आखिरी महीने की 29 तारीख है. इस्लाम में नई तारीख की शुरुआत चांद दिखने पर होती है. चांद महीने की 29 तारीख को नजर आ सकता है और 30 तारीख को भी. 30 तारीख को चांद नहीं आने पर सूर्य डूबने के बाद पहली तारीख मान ली जाती है.


मुसलमानों के लिए आ रहा है नया साल


इस्लामी कैलेंडर की खास बात ये है कि जहां ईस्वी कैलेंडर की नई तारीख रात के 12 बजे से शुरू होती है वहीं इस्लामिक कैलेंडर में नई तारीख सूर्य डूबने के बाद से हो जाती है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल के 12 महीने होते हैं. मुहर्रम साल का पहला महीना होता है जबकि आखिरी महीना जिल हिज्जा होता है. इस्लामी साल के पहले महीने मुहर्रम को एशिया क्षेत्र में बड़ी अकीदत के साथ मनाया जाता है. करबला के मैदान में आखिरी दूत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को शहादत मिली थी.


इस्लाम में चांद दिखने से बदलती है तारीख


शहादत के गम में शिया मतावलंबी मुहर्रम के मौके पर मातम करते हैं. ताजिया भी निकाली जाती है और इमामबाड़े जाकर पहलाम किया जाता है. आम तौर पर दुनिया में नए साल का स्वागत शानदार जश्न और कार्यक्रमों के साथ किया जाता है मगर इस्लाम में नए साल को धूमधाम से मनाने का चलन नहीं है. मुहर्रम की दसवीं तारीख को 'यौमे आशूरा' कहा जाता है. आखिरी पैगम्बर मोहम्मद साहिब की मक्का से मदीना हिजरत करने को इस्लामी तारीख की शुरुआत माना गया है.


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