Mahima Shanidev Ki: वर्षों तक बेटी संध्या से नहीं मिल सके देव विश्वकर्मा एक दिन सूर्यलोक पहुंचे तो उन्हें पता चला कि संध्या का एक और बेटा शनि भी है. मगर अब तक उसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं दिए जाने पर विश्वकर्मा ने सूर्यदेव से नाराजगी जताई. यहां बेटी और नाती शनिदेव से मिलकर बेहद खुश हुए, लेकिन इस मुलाकात के दौरान बेटी संध्या यानी छाया के बदले हाव भाव देखकर देव विश्वकर्मा थोड़े संकेत हो उठे. उन्हें एहसास हो गया कि वह उनकी बेटी नहीं, कोई और है.


सूर्य देव के सामने इसका खुलासा करने के बजाय वह शनि को मां के मायके घुमाने के बहाने दोनों को विश्वकर्मा महल ले आए. यहां आकर देवविश्वकर्मा ने एक योजना के तहत संध्या के बचपन के दिनों की बातें साझा कीं. संध्या बनी छाया इनसे पूरी तरह अनभिज्ञ रहीं. ऐसे में विश्वकर्मा ने उन्हें अपने कक्ष में जाने को कहा लेकिन छाया वहां भी नहीं जा सकीं. इससे विश्वकर्मा का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने संध्या यानी छाया की अग्नि परीक्षा लेने का निर्णय किया.


देवविश्वकर्मा ने छाया से अग्नि पुंज में हाथ डालने को कहा, लेकिन उन्हें कोई नुकसान नहीं होने पर वे चौंक उठे. तब उन्होंने कहा कि अग्नि से जीव तो जल सकता है, उसकी छाया नहीं, इसलिए तुम वास्तविक संध्या नहीं बल्कि कोई और हो, खुद सच कह दो. कोई चारा न देखकर छाया ने विश्वकर्मा को बताया कि आपकी आज्ञा से ही संध्या पति सूर्यदेव के ताप को सहने के लिए घोर तपस्या पर जाते हुए यम-यमी की देखभाल के लिए अपनी छाया के रूप में उनका निर्माण किया. 


सूर्य के ताप से अप्रभावित रहीं छाया
संध्या के तप पर जाने के बाद यम और यमी की देखभाल में जुटी छाया को देखकर एक दिन सूर्यदेव उनके पास आए लेकिन उनसे छाया को कोई नुकसान नहीं होने पर हैरान रह गए. उन्हें लगा कि संध्या अब उनका ताप सहने में समर्थ हो चुकी हैं. ऐसे में सूर्य देव का दांपत्य जीवन प्रभावित नहीं हुआ. सूर्य और छाया का पुत्र शनि ही है. यह सच्चाई सुनकर विश्वकर्मा नाराज होकर ये सच सूर्यदेव को बताने चल दिए. उन्हें डर लगा कि सूर्यदेव से यह बात छुपाना ठीक नहीं. वे उन्हें सच्चाई बताने के लिए जा रहे होते हैं तभी छाया संध्या की सच्चाई के बारे में विनती कर उन्हें रोक लेती हैं.


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