Shani dev: शनिदेव न्याय अधिकारी हैं, वह न अपना देखते हैं न पराया, वह सिर्फ सत्य और न्याय देखते हैं. पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि शनिदेव के जन्म के बाद जब उनकी मां छाया उन्हें लेकर पिता सूर्य को दिखाने पहुंचीं तो बेहद डरी और सहमी थीं, उन्हें डर था कि तेज से दूसरों को भस्म कर देने वाले और पूरे जगत को रोशन करने वाले सूर्य जब निस्तेज और सांवले रंग के बेटे को देखेंगे तो न जाने कैसी प्रतिक्रिया देंगे.


नामकरण के लिए सूर्य दरबार में रंगारंग कार्यक्रम के दौरान बुलाया गया. दुधमुंहे बेटे शनि को लेकर छाया पहुंचीं तो बेटे के नामकरण के लिए उत्साहित सूर्यदेव में उसका चेहरा दिखाने को कहा, लेकिन कुरुप और सांवले बेटे को देखकर वह भड़क गए और शनिदेव को अपना बेटा मानने से इनकार कर दिया. कहा जाता है कि सूर्यदेव ने अपने बेटे के तौर पर शनिदेव की पहचान खत्म कर देने के लिए उनकी हत्या करने जा रहे थे, लेकिन मां छाया ने उनके पांव पकड़कर उन्हें रोक दिया.


इस पर सूर्य देव ने पुत्र का परित्याग करने का फैसला किया. इस दौरान छाया ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो सूर्य देव आक्रोश में आकर छाया की चरित्र पर सवाल उठा बैठे. इससे आहत मां छाया दुख से विह्वल हो उठीं. यह देखकर गोद में मौजूद बाल शनि ने गुस्से में भरकर पिता सूर्य पर ग्रहण लगा दिया.


देखते ही देखते सूर्यदेव अंधरे की चपेट में आ गए. पूरी धरती और आकाश और पाताल में कोहराम मच गया. सूर्यदेव का शरीर काला पड़ने लगा, तभी देवताओं के आह्ववान पर शनिदेव ने ग्रहण हटा लिया. इस तरह पौराणिक कथाओं के अनुसार पहली बार सूर्य पर ग्रहण लगा था.


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