यूं तो कार्तिक महीने में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष फल प्राप्त होता है. वहीं खास बात ये है कि इस महीने में विष्णु को समर्पित दो विशेष दिन भी आते हैं. देव उठनी एकादशी और दूसरा बैकुंठ चतुर्दशी. देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को थी तो वहीं अब बैकुंठ चतुर्दशी 28 नवंबर को है. कहते हैं इस दिन भगवान शिव और विष्णु की विशेष कृपा से बैकुंठ धाम की प्राप्ति की जा सकती है. 


कहते हैं इस दिन भगवान शिव को 1 हज़ार कमल के फूल अर्पित किए जाए तो भोलेनाथ प्रसन्न होकर हर मनोकामना पूर्ण करते हैं और जीवन में आती है खुशहाली. लेकिन आखिरकार शिव शंकर को 1 हज़ार फूल अर्पित करने के पीछे क्या पौराणिक कारण है? क्यों इस खास दिन उन्हें कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं वो भी इतनी बड़ी संख्या में? चलिए बताते हैं इसके पीछे जुड़ी कथा.


इस दिन चतुर्मास के बाद भगवान शिव से मिले थे विष्णु


ये तो आप जानते ही होंगे कि जब भगवान विष्णु चार महीनों के लिए निद्रा में जाते हैं तो सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप दिया जाता है. लेकिन जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान नारायण चार महीनों बाद निद्रा से जागते हैं तो फिर उन्हें वापस सृष्टि के कार्यभार की जिम्मेदारी मिल जाती है. पुराणों में कहा गया है कि बैकुंठ चतुर्दशी ही वो दिन होता है जब भगवान शिव से मिलने भगवान विष्णु काशी जाते हैं और इसीलिए इसे बेहद ही शुभ दिन माना जाता है. 


क्यों चढ़ाए जाते हैं 1 हज़ार कमल के फूल


अब बात कमल के फूलों के अर्पित करने के पीछे कारण की. पौराणिक मान्यताओं की माने तो जब भगवान विष्णु चार महीनों के विश्राम से जागे तो वो काशी में शिव शंकर से मिलने पहुंचे थे. तब उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान के बाद 1 हज़ार कमल के पुष्पों से शिव की पूजा का संकल्प लिया. लेकिन शिव तो ठहरे शिव उन्होंने भक्तों की ही नहीं बल्कि नारायण की परीक्षा लेने की भी ठान ली. और चुपके से एक कमल का फूल गायब कर दिया. अब भगवान विष्णु सोच में पड़ गए कि कैसे इस दुविधा से निकला जाए और संकल्प को पूरा किया जाए.


अपने नयन करने वाले थे समर्पित


तब भगवान विष्णु ने सोचा कि उनकी आंखे भी कमल के समान ही हैं तो क्यों ना उन्हें ही शिव को अर्पित कर दिया जाए? तब वो अपने नयन अर्पित करने ही वाले थे कि भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें ऐसा करने से रोक लिया था. और उन्होंने माना कि विष्णु से बड़ा उनका कोई और भक्त है ही नहीं. इसीलिए हर और हरि के मिलने की इस चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना गया.