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घावों की रामबाण दवा है क्षमा, इसलिए माफी मांगने में विलंब न करें

Motivational Thoughts : संकल्प-विकल्प को छोड़कर जो अपने शत्रु या प्रतिद्वंद्वी के समक्ष स्वयं उपस्थित होकर निश्चल हृदय से क्षमा मांग लेता है वही विनम्र और क्षमाशील कहलाता है.

Motivational Thoughts : किसी को क्षमा करना या किसी से क्षमा मांगना दोनों ही कार्य अत्यधिक साहस और विशाल हृदय वाले ही पूर्ण कर पाते हैं. क्षमा वाणी शब्द का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति और उसकी वाणी में क्रोध, बैर, अभिमान, कपट व लोभ न होना. अपने प्रतिद्वंद्वी एवं शत्रु के प्रति क्रोधित बने रह कर उसे क्षमा किया जाए और उसके मन में मित्रता का भाव लाने की चेष्टा हो. क्षमा एक ऐसी रामबाण दवा है, जो गहराई तक जाकर घावों का इलाज करती है. प्रेम व सौहार्द को खत्म करने वाले जहर को खत्म कर देती है. माफी नहीं देना, क्षमा नहीं करना हमारे शरीर में हार्मोनल परिवर्तन पैदा करती है, जो शरीर के लिए घातक है.

अगर स्वयं के प्रति भी किंचित कोई गलती या अपराध हो जाए तो उसी समय कहा जाए कि मुझसे गलती हुई है, भविष्य में ऐसी गलती नहीं होगी, 'मुझे क्षमा कीजिए'. यही क्षमावाणी है. यहां क्षमा का व्यापक अर्थ अपने किए के मान से मुक्त होने से है. जब हम किसी से क्षमा मांगते हैं तो कहीं भीतर ही भीतर हम एक ज्यादा बेहतर मनुष्य होने का प्रयास करते हैं.

क्षमा मनुष्यता की पहचान है. कोई क्षमा मांगे और आप उसे क्षमा करें और जब आप क्षमा मांगे तो वह आपको क्षमा करें. लेकिन कोई क्षमा करेगा या नहीं ऐसे संकल्प-विकल्प को छोड़कर जो अपने शत्रु या प्रतिद्वंद्वी के समक्ष स्वयं उपस्थित होकर निश्चल हृदय से क्षमा मांग लेता है वही विनम्र और क्षमाशील कहलाता है. विनम्र होना खुद को बहुत से गुणों के प्रति ग्राह्य बना लेना है. क्षमा देने वाले का भी दायित्व है कि वह अपने हृदय की विशालता का परिचय दें और क्षमा मांगने वाले के साथ किसी भी तरह का विरोध या बैर मिटाकर मैत्री को स्थापना करे.

जैन धर्म में दस दिवसीय पर्युषण पर्व एक ऐसा पर्व है जो उत्तम क्षमा से प्रारंभ होता है और क्षमा वाणी पर ही उसका समापन होता है. इसमें प्रार्थना की जाती है कि मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूं सभी जीव मुझे क्षमा करें. मेरी वाणी के प्रति मैत्री भाव है, किसी के प्रति वैर भाव नहीं है. 

सच्चे हृदय से मांगी गई क्षमा ही सम्यक क्षमावाणी है. लेकिन आज अधिकांश लोग उन लोगों से क्षमा मांगते हुए देखे जाते हैं जिनसे किंचित भी बैर-विरोध या वैमनस्य नहीं है. इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि यह भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी भी बुराई की आशंका को पहले ही मिटा देता है. विश्व का कोई देश-विदेश ऐसा नहीं होगा जहां क्षमा के बिना काम चलता हो. यह इतना छोटा सार्वभौमिक शब्द है कि हर कोई इसे अपनाता है.

यह बात अलग है कि कोई इसे सहज ही अपनाता है और कोई परिस्थिति से प्रभावित होकर, किन्तु इसके बिना काम चलता नहीं. इस छोटे से शब्द क्षमा में इतनी शक्ति है कि वह बड़े से बड़े युद्ध और विवाद को खत्म करने में समर्थ होता है और ईर्ष्या से जलते हृदय में भी शांति का संचार करता है.

इसी अर्थ का कबीर का दोहा भी है कि 

ऐसी वाणी बोलिए 
मन का आपा खोए 
औरन को शीतल करे 
आपहु शीतल होय.

क्षमा प्रतिदिन व प्रति क्षण होना चाहिए. आखिर मनुष्य जीवन का उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि वह दूसरों के प्रति अधिक उदार रहे. सभी को स्वीकार करें. उनके साथ मीठा बोले और सभी के हृदय में उपस्थिति बनाए.  

विनम्र भाव से करें माफ
क्षमा करने वाले को अकड़ना नहीं चाहिए कि मैंने माफ कर दिया, मैं महान हूँ. माफी भी विनम्र स्वरूप में दी जानी चाहिए और इस बात का भान रहे कि उसे यह अनुभूति न कराई जाए कि आप माफ करके उस पर परोपकार कर रहे हैं, बल्कि परस्पर सहयोग करना चाहते हैं. वैज्ञानिक शोध के अनुसार द्वेष व्यक्ति के भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास को रोक देता है. विचार करना चाहिए किसी कि गलती को क्षमा न करके हम स्वयं के मन में ही भार बढ़ा लेते हैं. अगर सामने वाला अपने कृत्य के लिए आपसे क्षमा मांगता है तो उसे तुरंत क्षमा कर दें. इससे दोनों का बोझ कम हो जाएगा और संबंध सरल एवं मधुर स्थापित रहेंगे.  

चोट को दिल से लगा कर बैठना घातक
जो लोग अपने को ठेस पहुँचाने वाले, अपमानित करने वाले व्यक्ति को माफ नहीं करते, वे इस घटना का बोझ अपने साथ ढोते हैं व अपनी ऊर्जा इस बोझ को ढोने में खर्च कर देते हैं. माफी आपके भले के लिए है,  चोट को दिल से लगाए रखना दूसरे के तुलना में अपने आपको अधिक तकलीफ पहुंचाता है. यह आपकी मानसिक शांति को ठेस पहुँचती है.

क्षमा मांगने में विलंब न करें
क्षमा मांगने में विलंब नहीं करना चाहिए नहीं तो क्षमा मांगना कठिन हो जाएगा. खुले दिल से अपनी गलती स्वीकार की जाए.

क्षमा करते समय भी किसी प्रकार के तल्ख भाव या उसको गलती का अहसास कराने की चेष्टा न करें. गले मिलकर, मौन रूप से भी गिले-शिकवे दूर किए जा सकते हैं. इस दुनिया में उन्हें खुशी नहीं मिलती जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीते हैं, बल्कि उन्हें खुशी मिलती है जो दूसरों की खुशी के लिए जिंदगी की रफ्तार व शर्तें बदल देते हैं. दो अक्षर का शब्द 'क्षमा' अपने अंदर कई गूढ़ अर्थों को समाए हुए है. 

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