Friday Laxmi Chalisa Path: शुक्रवार के दिन धन-वैभव की देवी लक्ष्मी मां की पूजा (Friday Laxmi Puja) की जाती है. इस दिन लोग विशेष रूप से मां वैभव लक्ष्मी का व्रत और पूजा करते हैं और मां लक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं. आज महालक्ष्मी के व्रत (Mahalaxmi Vrat) का आखिरी शुक्रवार है. 29 सितंबर को समाप्त  (Mahalaxmi Vrat Ends 29th September) हो रहे 16 दिवसीय महालक्ष्मी व्रत के आखिरी शुक्रवार के दिन लक्ष्मी चालीसा का पाठ (Laxmi Chalisa Path) करने से मां लक्ष्मी (Maa Laxmi) की कृपा प्राप्त होती है. साथ ही घर में सुख-सौभाग्य का आगमन होता है. 


ज्योतिषियों के अनुसार आज शुक्रवार को अति विशिष्ट लक्ष्मी नारायण योगा (Laxmi Narayan Yog) का निर्माण हो रहा है. आज तुला राशि में बुध और शुक्र ग्रह एक साथ आ जाने के कारण इस योग का निर्माण होता है. इस योग को माता लक्ष्मी के पूजन और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे शुभ माना जाता है. धार्मिक दृष्टि से इस खास योग में माता लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने की सलाह दी जाती है. मां लक्ष्मी की मूर्ति या प्रतिमा के आगे घी का दीपक जला कर लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से घर में धन-धान्य और सौभाग्य का आगमन होता है. 


लक्ष्मी चालीसा (laxmi Chalisa)


दोहा


मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।


मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥


सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।


ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥


सोरठा


यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करूं।


सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥


॥ चौपाई ॥


सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि॥


तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरबहु आस हमारी॥


जै जै जगत जननि जगदम्बा। सबके तुमही हो स्वलम्बा॥


तुम ही हो घट घट के वासी। विनती यही हमारी खासी॥


जग जननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥


विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी।


केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥


कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी। जगत जननि विनती सुन मोरी॥


ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥


क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो॥


चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी॥


जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा॥


स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥


तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥


अपनायो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥


तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी। कहं तक महिमा कहौं बखानी॥


मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥


तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥


और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥


ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥


त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥


जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥


ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।


मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन- इच्छित वांछित फल पाई॥


तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मन लाई॥


और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करे मन लाई॥


ताको कोई कष्ट न होई। मन इच्छित फल पावै फल सोई॥


त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि॥


जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे। इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै॥


ताको कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै।


करि विश्वास करैं व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥


जय जय जय लक्ष्मी महारानी। सब में व्यापित जो गुण खानी॥


तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयाल कहूं नाहीं॥


मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजे॥


भूल चूक करी क्षमा हमारी। दर्शन दीजै दशा निहारी॥


बिन दरशन व्याकुल अधिकारी। तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी॥


नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥


रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥


कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई॥


रामदास अब कहाई पुकारी। करो दूर तुम विपति हमारी॥


दोहा


त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास।


जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश॥


रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर।


मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर॥


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