Laxmi ji: शुक्रवार का दिन लक्ष्मी जी और शुक्र देव का आशीर्वाद पाने के लिए बहुत पुण्य फलदायी माना गया है. मान्यता है कि मां लक्ष्मी जिस पर मेहरबान हो जाएं.  उसके आय और भाग्य में अप्रत्याशित वृद्धि होती है. साथ ही वह अपने जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करता है. अगर आप भी मां लक्ष्मी की कृपा-दृष्टि पाना चाहते हैं, शुक्रवार के दिन महालक्ष्मी कवच का पाठ करें.


|| श्री लक्ष्मी कवचं ||


लक्ष्मी में चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः 


नारायणी शीर्ष देशे सर्वाङ्गे श्री स्वरूपिणी 


राम पत्नी तु प्रत्यङ्गे रामेश्वरी सदाऽवतु


विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा


जय दात्री धन दात्री पाशाक्ष मालिनी शुभा


हरी प्रिया हरी रामा जयँकरी महोदरी


कृष्ण परायणा देवी श्रीकृष्ण मनमोहिनी 


जयँकरी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभङ्करि


सुखदा मोक्षदा देवी चित्र कूट निवासिनी


भयं हरतु भक्तानां भव बन्धं विमुञ्चतु 


कवचं तन्महापुण्यं यः पठेद भक्ति संयुतः 


त्रिसन्ध्यमेक सन्ध्यं वा मुच्यते सर्व संकटात


|| फलश्रुतिः ||


कवचास्य पठनं धनपुत्र विवर्द्धनं 


भीति विनाशनं चैव त्रिषु लोकेषु कीर्तितं


भूर्जपत्रे समालिख्य रोचना कुंकुमेन तु 


धारणाद गलदेशे च सर्व सिद्धिर्भविष्यति


अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी लभते धनं


मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः


गर्भिणी लभते पुत्रं वन्ध्या च गर्भिणी भवेत् 


धारयेद यदि कण्ठे च अथवा वाम बाहुके


यः पठेन्नियतो भक्त्या स एव विष्णु वद भवेत् 


मृत्यु व्याधि भयं तस्य नास्ति किञ्चिन्मही तले


पठेद वा पाठयेद वापि शुणुयाच्छ्रावयेदपि


सर्व पाप विमुक्तः स लभते परमां गतिम्


सङ्कटे विपदे घोरे तथा च गहने वने


राजद्वारे च नौकायां तथा च रण मध्यतः


पठनाद धारणादस्य जयमाप्नोति निश्चितम 


अपुत्रा च तथा वन्ध्या त्रिपक्षं शृणुयाद यदि


सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं यशस्विनीं


शुणुयाद यः शुद्ध-बुद्ध्या द्वौ मासौ विप्र वक्त्रतः


सर्वान कामान वाप्नोति सर्व बन्धाद विमुच्यते


मृतवत्सा जीव वत्सा त्रिमासं श्रवणं यदि


रोगी रोगाद विमुच्यते पठनान्मास मध्यतः


लिखित्वा भूर्जपत्रे च अथवा ताड़पत्रके


स्थापयेन्नित्यं गेहे नाग्नि चौर भयं क्वचित्त


शृणुयाद धारयेद वापि पठेद वा पाठयेदपि


यः पुमान सततं तस्मिन् प्रसन्नाः सर्व देवताः


बहुना किमिहोक्तेन सर्व जीवेश्वरेश्वरी


आद्याशक्तिः सदालक्ष्मीः भक्तानुग्रह कारिणी 


धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद ध्रुवं


|| श्री तंत्रोक्तं श्रीलक्ष्मी कवचम सम्पूर्णं


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