Ganesh Chaturthi 2024: भगवान शिव (Lord Shiva) के भक्तों को जिस तरह शैव कहा जाता है, विष्णु जी (Vishnu ji) के भक्तों को वैष्णव कहा जाता है. ठीक वैसे ही गणपति (Ganpati) के भक्तों को ‘गणपत्य’ कहा जाता हैं. वे मानते हैं कि गणेश ही परमात्मा/परब्रह्म हैं. संत अंक अनुसार, इस संप्रदाय के अनुयायी दक्षिण भारत और महाराष्ट्र, विशेषकर महाराष्ट्र और कर्नाटक में पाए जाते हैं.


गणपति उत्सव (Ganesh Utsav) के दौरान  हम सभी नियमित रूप से "गणपति बप्पा मोरया" (Ganpati Bappa Morya) का जाप करते हैं. पहले दो शब्द आसानी से समझ में आते हैं क्योंकि वे गणेश को हमारे पिता के रूप में संदर्भित करते हैं. लेकिन तीसरे शब्द ‘मोरया’ की उत्पत्ति के बारे में बहुत से लोग नहीं जानते.


कैसे हुई 'मोरया' शब्द की उत्पत्ति


मोरगांव, महाराष्ट्र के पुजारियों और स्थानीय लोगों के अनुसार, यह शब्द गणपत्य संप्रदाय के प्रवर्तक मोरया गोसावी (Morya Gosavi) को सम्मान देने के लिए कहा जाता है. गणेश जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया था और घोषणा के हर बार जब उनका नाम लिया जाए तो उसके बाद ‘मोरया’ कहा जाए. इस प्रकार "गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया" का जाप होता है.


कौन थे मोरया गोसावी (Who is Morya Gosavi)


मोरया गोसावी के माता-पिता वामनभट्ट और उमाबाई मूल रूप से बीदर, कर्नाटक के थे, लेकिन वे मोरगांव में बस गए. गणेश जी उनके इष्ट देव थे. वामनभट्ट और उमाबाई को विवाह के बहुत वर्षों बाद एक पुत्र हुआ, जिसका उन्होंने उसका नाम ‘मोरया’ रखा क्योंकि वे अपने पुत्र को भगवान मोरया का उपहार मानते थे. मोरया ने अपने पिता से गणेशोपासना में दीक्षा ली.


उनके माता-पिता की मृत्यु 125 और 105 वर्ष की उम्र में हुई. मोरया ने मोरगांव, थेउर और चिंचवड़ में तपस्या जारी रखी. वह चिंचवड़ में बस गए. उनकी तपस्या पवना नदी के किनारे दो किलोमीटर दूर की जाती थी. वह कई दिनों तक दूर्वा घास का रस पीते थे. एक बार वे 42 दिनों तक बिना उठे अपने आसन पर बैठे रहे. उन्होंने अपने तपोबल के कारण कई सिद्धियां प्राप्त कीं. उनकी शक्ति इतनी प्रबल थी कि बाघ उनके सामने शांत बैठ जाते थे और सांपों का विष समाप्त हो जाता था. उन्होंने कई चमत्कार किए जैसे अंधों को दृष्टि वापस लाना.


उन्होंने अपनी पत्नी को ब्रह्मविद्या सिखाई. मोरया गोसावी ने अपने पुत्र का नाम चिंतामणि रखा. तुकाराम महाराज ने उसी पुत्र को चिंतामणि देव कहा. तब से उनका पारिवारिक नाम ‘देव’ हो गया. मोरया गोसावी ने संवत 1618 में पवना नदी के किनारे समाधि ली. आज भी महाराष्ट्र समेत देशभर में मोरया गोसावी के नाम का जय घोष होता है. 


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