(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ganesh Utsav 2022: देश का इकलौता ऐसा गणेश मंदिर, जहां होती है बिना सिर वाले गणपति की पूजा, जानें रोचक बातें
Ganesh Utsav 2022: 9 सितंबर 2022 को गणपति का विसर्जन किया जाएगा. देश में इकलौता ऐसा मंदिर भी है जहां बिना सिर वाले गणपति प्रतिमा की पूजा होती है. आइए जानते हैं इस मंदिर की रोचक बातें
Ganesh Utsav 2022 Ganpati Mandir: देशभर में गणेश उत्सव की धूम है. चारों तरफ गजानन की भक्ति का माहौल है. गणपति के मंदिरों, जगह-जगह बने पंडालों में दर्शन के लिए लंबी कतारें लगती है. 9 सितंबर 2022 को गणपति का विसर्जन (Ganesh Visarjan 2022 date) किया जाएगा. उससे पहले हर कोई बप्पा का आशीर्वाद पाना चाहता है.
रिद्धि सिद्धि के दाता गणेश जी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसके जीवन में कभी विघ्न, बाधा नहीं आती. सुख-समृद्धि का वास होता है. वैसे तो गणेश भगवान के कई प्रसिद्धि मंदिर है लेकिन देश में इकलौता ऐसा मंदिर भी है जहां गणपति का सिर धड़ (Ganesh unique temple) से अलग है. यहां बिना सिर वाले गणेश प्रतिमा की पूजा की जाती है. दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए यहां आते हैं. आइए जानते हैं गणपति के इस अनोखे मंदिर की महिमा और क्या है इसका इतिहास.
गणपति की बिना सिर वाली मूर्ति (Ganesh Idol without head)
- गजानन का ये विचित्र मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. इसका नाम मुंड कटिया मंदिर है. यहां मौजूद बिना सिर वाली गणेश जी की मूर्ति आकर्षण का क्रेंद्र है.
- धर्म ग्रंथों के अनुसार यही वो स्थान है जहां गजानन के पिता भगवान भोलेनाथ ने गणपति का सिर धड़ से अलग कर दिया था. यहां आज भी गणेश जी की सिर कटी मूर्ति विराजमान है.
क्या है इस मंदिर से जुड़ी कथा ?
पौराणिक कथा के अनुसार पुत्र प्राप्ति के लिए माता पार्वती ने अपने मैल और उबटन से एक प्रतिमा का निर्माण किया था. इस मूर्ति में मां पार्वती ने जान डाल दी थी. धार्मिक मान्यता है कि इसी से गणपति की उतप्ति हुई थी. एक समय जब माता पार्वती गौरी कुंड में स्नान के लिए जा रही थी तो उन्होंने गजानन को बाहर खड़ा कर दिया और कहा कि कोई भी अंदर प्रवेश न करें.
महादेव ने क्यों धड़ से अलग किया गणपति का सिर ?
माता की आज्ञा का पालन करते हुए गणपति डटे रहे. कुछ समय पश्चात महादेव वहां पहुंचे और अंदर जाने की कोशिश करने लगे. गणपति ने तो भोलेनाथ क्रोधित हो उठे. दोनों में युद्धि छिड़ गया और शिव जी गणपति का सिर धड़ से अलग कर दिया. शंकर जी इस बात से अंजान थे कि गणपति उनके पुत्र हैं. देवी पार्वती को जब ये बात पता चली तो वे शिव जी पर क्रोधित होकर विलाप करने लगीं. मान्यता है कि इसके बाद शिव जी ने गणपति को हाथी का सिर लगाकर पुन: जीवित किया था.
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