भगवान गणेश अपने भक्तों के सारे दुख दर्द दूर कर देते हैं. बप्पा की कृपा से घर के समस्त वास्तु दोषों का नाश हो जाता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी. वास्तु शास्त्र के नियमों की अनदेखी करने वाले व्यक्ति का जीवन मुश्किलों से घिर जाता है. वास्तुदोष दूर करने के लिए भगवान गणेश की पूजा की जाती है. हम आपको बता रहे हैं कि कैसे श्रीगणेश वास्तुदोष को दूर करते हैं.
गणेश जी की स्थापना के नियम
घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. घर में गणेश जी की की बहुत मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए. पूजा के स्थान पर गणेशजी की तीन मर्तियां नहीं रखी होनी चाहिए.
घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं. किन्तु यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुँह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए.
घर में गणेश जी की वही प्रतिमा करनी चाहिए जिसमे उनकी सूंढ़ बाएं तरफ हो. बप्पा की मूर्ति की ऊंचाई बारह अंगुल से ज्यादा न हो तो बेहतर होगा. पीत वर्ण के गणपति सर्वोत्तम माने जाते हैं. तुलसी दल गणेश जी को कभी भी अर्पित नहीं करना चाहिए. एक स्थान पर केवल एक ही मूर्ति रखें.
बच्चों की पढ़ाई की मेज पर या बच्चों के कमरे में पीले या हल्के हरे रंग की गणेश जी की मूर्ति लगानी चाहिए. सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों के लिए सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए. कार्यस्थल पर खड़े हुए गणेश जी की मूर्ति लगाएं जिनके दोनों पैर ज़मीन को स्पर्श करते हों. इससे कार्यस्थल पर स्फूर्ति और काम करने में उमंग बनी रहती है.
जिन व्यक्तियों में साहस और आत्मविश्वास की कमी हो या किसी विशिष्ट व्यक्ति से बात करने में झिझक लगती हो तो उन्हें अपने घर या कार्यस्थल पर मूषक या चूहे पर खड़े गजानन की प्रतिमा लगानी चाहिए. मूषक या चूहे पर खड़े गजानन की प्रतिमा साहस, शक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक है.
स्वास्तिक को गणेश जी का प्रतीक माना गया है. भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वास्तिक दीवार पर बनाने से वास्तुदोष का प्रभाव कम हो जाता है.
पूजाघर में सिंहासन पर बैठे हुए गणेश की प्रतिमा जिनकी सूंड बांयी ओर मुड़ी होती है, रखी जानी चाहिए. इनकी पूजा से घर में सुख-शांति व समृद्धि आती है.
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