Ganga and Raja shantanu story: हर व्यक्ति के जीवन में मां ही तो वह एकमात्र अस्तित्व है, जो हर परिस्थिति में संतान को समझने, सुरक्षित रखने और साथ खड़े होने का भरोसा देती है.वो अपने बच्चों के लिए काल से भी लड़ जाती है.हिंदू धर्म में गंगा नदी को मां की उपाधि दी गई है. लेकिन महाभारत के अनुसार मां गंगा ने अपने ही 7 पुत्रों को मौत के मुंह में धकेल दिया था.9 जून 2022 को गंगा दशहरा मनाया जाएगा.प्राचीन समय में इस दिन देव नदी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थी.आइए जानते है मां गंगा ने आखिर क्यों अपने 7 पुत्रों को नदी में बहाया था.


विवाह के लिए गंगा ने रखी ये शर्त


राजा शांतनु को देवी गंगा से प्रेम हो गया था.शांतनु ने गंगा से विवाह करने की इच्छा जाहिर की तो गंगा विवाह के लिए मान गईं, लेकिन देवी ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी कि वह अपनी इच्छा के अनुसार ही रहेगी.उन्हें कभी रोका-टोका नहीं जाएगा.अगर ऐसा हुआ तो वो उन्हें छोड़कर चली जाएगी. राजा ने शर्त मान ली.


गंगा ने 7 पुत्रों को नदी में बहा दिया


विवाह के बाद जब गंगा मां बनी तो उन्होंने अपनी संतान को नदी में बहा दिया.जब भी देवी गंगा किसी संतान को जन्म देतीं तो उसे तुरंत ही नदी में बहा देती थीं.इस तरह सात पुत्र काल के गाल में समा चुके थे.लेकिन राजा शांतनु विवाह के समय दिए गए वचन के चलते गंगा से कोई प्रश्न ना कर सके.राजा बहुत निराश हो चुके थे और अब अपने ही पुत्रों की अपने सामने होने वाली हत्या उनके लिए असहनीय हो गई थी.


जब राजा शांतनु ने तोड़ी शर्त


जब देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र का जन्म हुआ तब भी मां गंगा उसे नदी को भेंट निकल गईं, तब राजा शांतनु स्वयं को रोक ना सके. उन्होंने गंगा को रोक कर पूछ लिया कि वह हर बार अपनी संतानों को नदी में क्यों बहा रही हैं? तब गंगा ने कहा कि आपने अपना वचन तोड़ दिया अब मुझे आपका परित्याग करना होगा.आप संतान के लिए अपना दिया हुआ वचन भूल गए. अब ये संतान आपके पास रहेगी और मैं आपको छोड़कर जा रही हूं.


इस श्राप से बचाने के लिए संतान को दी मृत्यु


देवी गंगा ने जाने से पहले राजा शांतनु के प्रश्न का जवाब दिया कि आखिर क्यों उन्होंने अपने पुत्रों को मारा. देवी ने बताया कि उनके आठों पुत्र सभी वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था.इनका जन्म ही हर पल दुख सहने के लिए हुआ था.जीवन भर के कष्ट से बचाने के लिए देवी गंगा ने अपनी ही संतान को धारा में प्रवाहित कर मुक्त कर दिया. मां गंगा के आठवें पुत्र पितामह भीष्म बने, जिन्हें कभी कोई सांसारिक सुख प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि हर कदम पर दुख झेलकर पड़ा और अंत में वे कठिन मृत्यु को प्राप्त हुए.


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